भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हो जो तौफीक तो ज़रा देखो / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हो जो तौफ़ीक तो ज़रा देखो
संग में भी बसा ख़ुदा देखो

अब जिये भी तो क्या जिये कोई
एक महशर-सा है बपा, देखो

दिल के जज़्बात मैं लिखूँ कैसे
कम है लफ़्जों का सिलसिला देखो

ख़्वाहिशें रक्खो ज़िन्दा तुम वर्ना
ज़िन्दगी होगी बेमज़ा देखो

छंट गया है ग्रहण ग़ुलामी का
मस्त आज़ादियाँ ज़रा देखो

दस्तकें देके दिल के दर पर यूँ
ये हवा कह रही है क्या देखो

सुबह के इंतजार में ‘देवी’
रात जागी है क्या ज़रा देखो