इतना भी नहीं जानते, रहता हूँ मैं कहाँ
धड़कन जहाँ बढ़ जाती है, रुकता है कारवाँ। 
है ताज़गी गुलाब की, रंगीन गुलसिताँ
बहकी हुई उमंग का, उड़ता हुआ जहाँ। 
सैलाब आशिकी का, तिष्णा लबों की चाह
उमड़ी हुई जवानी, कयामत का है समाँ। 
साहित्य, संस्कृति व कला, का जहाँ संगम
हर दिल में, जल रही हो जहाँ, प्यार की शमां। 
हो जो भी हंसी और जवां, तेवर नये-नये
पूछो, जो पता मेरा तो, बोलेगी हर जुबां। 
साकी भी हो, शराब भी, मस्ती का हो हूजूम
मदहोशी का आलम हो जहाँ, रहता हूँ मैं वहाँ। 
मतलब की मुलाकात का, मुकाम ये नहीं
हो दिल जहाँ प्रधान, रहता हूँ मैं वहाँ।