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हो न जब नाआश्ना वो आश्नाई आपकी / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
Kavita Kosh से
हो न जब नाआश्ना वो आश्नाई आपकी ,
फिर सहन हो किस तरह ज़ालिम जुदाई आपकी !
आपने ख़ुद ही कहा था भूल जाऊं आपको ,
आप ही बतलाइए क्यूं याद आई आपकी !
यह कहूं मैं आपका हूं बात यह क्यूंकर करूं ,
जब मुझे है दिख रही सारी ख़ुदाई आपकी !
यूं मेरी आंखों में आंखें ड़ाल कर मत देखिए ,
आप को तड़पा न जाए बेवफ़ाई आपकी !
भूल कर भी आप की अब हम न खाएंगे क़सम ,
हो यक़ीं कुछ लो क़सम हम ने उठाई आपकी !