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हो न हो मेरी कहानी का समापन हो / प्रमोद तिवारी
Kavita Kosh से
तोड़ कर सम्बन्ध सारे
उड़ गया पंछी
घोंसला
सूना सघन
वन हो गया
हो न हो मेरी कहानी का
समापन हो गया
क्यों स्वयं से ही
अपरिचित हम
अचानक हो गये
किस कथा के पात्र थे
किसके कथानक हो गये
अब न बीतेंगे
तितलियों को पकड़ते दिन
फूल का आंगन
तपोवन हो गया
झिलमिलाता दीप
जल में
तैरता ओझल हुआ
एक मृग शावक
अचानक आज
क्यों घायल हुआ
क्यों ये प्यासे ओंठ
रह-रह थरथराते हैं
क्यों ये बादल
रेत का कण हो गया
दूर कोसों दूर रहती
बिछुड़ जाने की व्यथा
आज प्रचलन में
अगर होती
स्वयंवर की प्रथा
किन्तु होनी कौन
अब तक टाल पाया है
मैं पराजित
प्यास का घन हो गया