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हो सकता है फिर आऊँ / दिनेश कुमार शुक्ल

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लेकर आत्माओं की सुवास
या अनायास उठती तरंग
या टूटी हुई प्रतिध्वनि
का संगीत लिये मैं आऊँ

या
मरु की वर्षा के प्रभात में अकस्मात्
अंकुरित बीज-सा
तुम्हें देख मुस्काऊँ
या घन-गर्जन में खिले
गुलाबी और बैंजनी
तड़ित-कमल की तरह
अचानक तड़प-तड़पकर खो जाऊँ

हो सकता है फिर आऊँ
और
तुम्हें साथ ले जाऊँ।