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हौं हरिदास-दास कौ दास / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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हौं हरिदास-दास कौ दास।
परम अनुग्रह करि पूरी प्रभु ने मो मन की आस॥
तन-मन, धन-जन, कछु नहिं मो पै, हौं चरननि कौ चेरौ।
बड़भागी को मो सम, पायौ पद-कमलनि महँ डेरौ॥
नहिं कछु साधन कौ बल, हौं तौ दास-दास-पद-धूल।
यहै एक अवलंब, परम बल, यहै सजीवन मूल॥
श्रीहरि के प्रिय दास, जानि मोहि निज दासनि कौ दास।
सब अपराध छमा करि रायौ निज चरननि के पास॥