भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ॾेती लेती / हरूमल सदारंगाणी ‘ख़ादिम’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

था चवनि:
“आह धीउ पराओ धन“
थी सधेई
त जल्द ॿाहर कढु
जेतिरो वक्त
उन खे
घर रखंदें
ओतिरो घणो भरीदें व्याज
मतां रखिणो पवेई गिर्वी पाणु!