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‌हो गई लम्बी निशाएँ दिन बहुत छोटे हुए / कन्हैयालाल मत्त

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हो गई लम्बी निशाएँ
दिन बहुत छोटे हुए !
छिन गया परमिट उषा का
धूप के कोटे हुए !

हैं पड़ीं ख़ामोश सिम्तें
हवा बड़बोला हुई
चाँद बर्फ़ीले कुहन-सा
चाँदनी ओला हुई
बन्द कमलों के कुहर में
गूँजती है षट्पदी
मौन उल्लाला बना
चिर-यातना रोला हुई

श्वास की इफ़रात है
विश्वास के टोटे हुए !

कनखियों से झाँकती-सी
किरण शरमाने लगी
सुबह की लाली कुहासे में
ढली जाने लगी
हाथ-पैरों की हरारत की
बढ़ीं मजबूरियाँ
पोरुओं पर हवा हिमदन्ती
ग़ज़ब ढाने लगी

त्रस्त निर्वसना कली के
भाग फिर खोटे हुए !

मूक है वाचाल पथ अब
मुखर मात्र अलर्क है
इस उलट-अनुपात में
हालात का ही फर्क है
ज़िन्दगी ओढ़े पड़ी है
अलस तूल-रजाइयाँ
सुगबुगाहट की लहर
पिछले पहर का तर्क है

चल दिया धुनिया
कपासी दिन बिना ओटे हुए !