’आमीन’ पत्थर / येहूदा अमिख़ाई / श्रीविलास सिंह
मेरी मेज़ पर रखा है एक पत्थर जिस पर लिखा है शब्द — ’आमीन’
एक तिकोना टुकड़ा यहूदी क़ब्रिस्तान के पत्थर का, क़ब्रिस्तान जो नष्ट हो चुका हैं
कई पीढ़ियों पूर्व, अन्य टुकड़े, सैकड़ों सैकड़ों,
बिख़र गए है जो यहाँ-वहाँ बेतरतीब, और एक तीव्र तड़प,
एक अन्तहीन उत्कण्ठा भरी है उन सबमें :
प्रथम नाम तलाश में है पारिवारिक नाम की, मृत्यु की तिथि खोजती है
मृतक का जन्मस्थान, पुत्र का नाम चाहता है जानना
नाम पिता का, जन्मतिथि तलाशती है आत्मा से पुनर्मिलन
जो कि इच्छुक है शान्ति से विश्राम हेतु। और जब तक वे नहीं पा जाते
एक दूसरे को, वे नहीं पाएँगे पूर्ण विश्राम ।
बस, यही पत्थर पड़ा है शान्ति से मेरी मेज़ पर और कहता है — ’आमीन’।
किन्तु अब सब टुकड़े कर लिए गए हैं इकट्ठा प्रेमिल कृपा से
एक दुखी सज्जन द्वारा । वह साफ़ करता है उनके हर दाग़-धब्बे,
तस्वीरें खींचता है उनकी एक-एक कर, व्यवस्थित करता है उन्हें
बड़े कक्ष में, बना देता है हर क़ब्र के पत्थर को फिर से पूर्ण,
फिर से एक : टुकड़ा-दर-टुकड़ा,
मृतकों के पुनर्जीवन की भाँति, एक मोजैक,
एक वर्ग पहेली, बच्चों का खेल ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह