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“क्षण-क्षण डूबती किरण-सी करती विमल सलिल-संक्षोभ प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
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“क्षण-क्षण डूबती किरण-सी करती विमल सलिल-संक्षोभ प्रिये!
आ-आकर चपल धवल बुदबुद घेरते तुम्हें कर लोभ प्रिये!
ढलकते धवल जलकण श्यामल अलकावलि से अनमोल प्रिये!
पलकों पर रूक फिर ढुलक-ढुलक जाते कपोल पर गोल प्रिये!
धा उरज-श्रृंग पर नीर-बिन्दु का जाता बिखर वितान प्रिये”।
कहते “वह रही धन्य बेला था धन्य तुम्हारा स्नान प्रिये”।
रागी लोचन! ढूढ़ती तुम्हें बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥116॥