भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

160 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रांझे दीयां भरजाइयां तंग होके खत हीर सयाल नूं लिखया ए
साथों छैल वधीक सौ वार सुटी लोक यारियां किधरों सिखया ए
देवर चंद साडा साथों रूस आया बोल बोल के घरां थीं त्रिखया ए
साडा लाल मोड़ो सानूं पायो जानो कमलियां नूं पाई भिखया ए
कुड़े सांभ नाहीं माल रांझयां दा कर सारदा दीदड़ा तिखया ए
झट कीतियां लाल न हथ आवण सोई मिले जो तोड़ दा लिखया ए
कोई ढूंढ़ वडेरड़ा कम जोगाअजे एह ना यारियां सिखया ए
वारस शाह लै चिठियां दौड़या ई कम्म कासदां<ref>खत ले जाने वाले</ref> दे मियां सिखया ए

शब्दार्थ
<references/>