16 सोल्लेॅ/61 एकसठ / मीरा झा
बूढ़ापन होनाय जुर्म नै छै
बूढ़ापन के कोय उम्र नै छै
सोल्लेॅ रहेॅ कि एकसठ
दोन्हू में कोय फर्क नै छै
युवा समझदारी सें दूर
हिनी छौं दोन्हू सें भरपूर
बेहतरीन जवानी के आलम
पूरे दम-खम सें मशहूर
कुछ नै-मन के थकान बुढ़ापा छै
एकरा नै फटकाना छै
दिल दिमाग दोन्हूं के भैया
तोरा जिमा खजाना छै
ई बेजोड़ जवानी, जे कोन्हू
भुवन के पास नै छै
मन के सोच लगन दिल के
अनुभव के निधि केॅ पाना छै
अपना लगाँ, नै फटकेॅ देॅ
बचोॅ सदा बूढ़ापन सें
ई तेॅ स्फटिक मील के पत्थर
कैलाश शिखर के चुबन छै
हम्में सब अनमोल-कृति छी
केकरोॅ? प्रकृति के
अनुकृति छी, जौवन मंडल के
हम वै विराटके महाकृति
अभिराम छौं यै भूतल के
अपना केॅ पहचानोॅ तोंय
देवी देव नै बूढ़ोॅ होय छै
हुनके अंश छिखो तोंय हरदम
ऐ में कोनो तर्क नै छै
बूढापन के कोय उम्र नै छै
बूढापन होना जुर्म नै छै