2014 कुछ इम्प्रेशंस / कात्यायनी
चिकने चेहरे वाला
वह सुखी-सन्तुष्ट आदमी
कितना डरावना लग रहा है
धीरे-धीरे गहराते अन्धेरे की इस बेला में।
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जो उम्मीदें खो चुका है
बहुत सारी दूसरी चीज़ों के साथ
उसका रोना-झींकना
ऊब और झुँझलाहट पैदा करता है
लेकिन बीच-बीच में उससे मिलने को
जी चाहता है यह पूछने के लिए
कि उसकी गुमशुदा चीज़ों में से
क्या कुछ मिल गई हैं ?
००
जो पराजयों के चयनित इतिहास को
निचोड़कर नई सैद्धान्तिकी गढ़ रहा है
खण्ड से समग्र की
और पेड़ से जंगल की पहचान करता हुआ,
वह नया इन्द्रजाल रचता कापालिक है बौद्धिक छद्मवेशी।
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सबसे ख़तरनाक है
जानते-बूझते झूठी दिलासा देने वाला
मिथ्या आशाओं की मृगमरीचिका
रचने वाला आदमी।
लेकिन नहीं, उससे कम घातक नहीं है वह आदमी
जो चुपचाप इन्तज़ार करने की,
हवा का रुख भाँपते रहने की सीख देता है
या फिर यह बताता है कि
रोज़-रोज़ धीरे-धीरे बनती हुई यह दुनिया
एक दिन खुद-ब-खुद बदल जाएगी।
००
सबसे कुटिल किस्म के बेरहम हैं वे लोग
जो क़त्लगाहों के बाहर
मुफ्त शव-पेटिकाएँ बाँट रहे हैं,
यन्त्रणागृहों के बाहर टेबुलों पर
मरहमपट्टी का सामान सजाए बैठे हैं,
और लुटे-पिटे लोगों के बीच
रोटी-कपड़ा-दवाइयाँ और
किताबें बाँट रहें हैं
और छोटी-छोटी पुड़ियों में
थोड़ी-थोड़ी आज़ादी भी।
००
इन सभी कपट प्रपंचों और दुरभिसन्धियों के विरुद्ध
खड़े हैं ईमानदारी से कुछ लोग
जो पुरानी जीतों को
हूबहू पुराने तरीके से ही
लड़कर दुहराना चाहते हैं.
उन्हें मठवासी भिक्षु बन जाना चाहिए
अन्यथा इतिहास में लौटने की
कोशिश करते हुए वे
अजायबघरों में पहुँच जाएँगे
या फिर कुछ अभयारण्यों में देखे जाएँगे।
००
समय का इतिहास
सिर्फ़ रात की गाथा नहीं.
उम्मीदें यूटोपिया नहीं,
यूटोपिया से निर्माण परियोजना तक का
सफ़रनामा होती हैं
और रात की हर गाथा को भी
उम्मीदों के बार-बार आविष्कार के
जादुई यथार्थ को जानने के बाद ही
लिख पाना मुमकिन होता है।