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210 / हीर / वारिस शाह

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काज़ी आखदा एह जो रोड़ पका हीर झगड़यां नाल ना हारदी ए
ल्याओ पढ़ो नकाह मूंह बन्न इसदा मता कोई फसाद गुजारदी ए
छड मसजदां डेरियां विच वढ़दी छड बकरियां सूरियां चारदी ए
वारस शाह मधानिएं हीर जटी इशक दहींदा घिउ नितारदी ए

शब्दार्थ
<references/>