भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

272 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाथ खोलह अखीं कहया रांझणे नूं बचा जाह तेराकम होया ई
फल आन लगा उस बूटड़े नूं जेहड़ा विच दरगाह दे बोया ई
हीर बखश दिती सचे रब्ब तैनूं मोती लाल दे नाल परोया ई
चढ़ दौड़के जित लै खेड़यां नूं बचा सौण<ref>सगून</ref> तैनूं भला होया ई
कमर कस उदासीयां बन्ह लइआं जोगी तुरत तयार ही होया ई
खुशी हो के करो विदा मैंनूं हथ बनह के आन खलोया ई
वारस शाह जां नाथ ने हुकम कीता टिलयों उतरदा पतरा होया ई

शब्दार्थ
<references/>