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27 अगस्त / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
सुरजीत सुक्खी के लिए, जिनकी अकाल-मृत्यु को मैं अपने जन्म-दिन पर याद करता हूँ
सुबह सवेरे
निद्रा-अनिद्रा में
लटकती
फ़ोन की घन्टी
पानी में भीगी आवाज़
‘जन्म दिन मुबारक’
भीग गया मैं
भीतर तक
कितनी बूँदें
बाहर आकाश से
मेरे मन की धरा पर
छलछलाती आ गिरीं
चीख पड़ा मैं
बधाई !
हे कवि !
बधाई !
इस भरी दुनियाँ में
अभी भी
किसी एक को
याद है तुम्हारी ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा