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27 / हीर / वारिस शाह
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रूह छड कलबूत<ref>शरीर</ref> जिउं विदा हुंदा तिवें ऐह दरवेस सिधारिया ई
अन्न पाणी हज़ारे दा कसम कर के जीऊ झंग सिआलां नूं धारिया ई
कीता रिज़क<ref>रोजी</ref> ने खरा उदास रांझा चलो चली ही जिऊ पुकारिया ई
कच्छे वंझली मार के रवां<ref>वियोग, विछोड़ा</ref> होया वारिस वतन ते देस विसारिया ई
शब्दार्थ
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