भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

285 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भेत दसना मरद दा कम्म नाहीं मरद सोई जो वेख दम घुट जाए
गल जीऊ दे विच जो रहे खुफिया काउं वांग पैखाल<ref>बीच में</ref> ना सुट जाए
भेत दसना किसे दा भला नाहीं भावें पुछ के लोक नखुट जाए
वारस शह ना भेत संदूक खुले भावें जान दा जंदरा टुट जाए

शब्दार्थ
<references/>