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287 / हीर / वारिस शाह
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मरद बाझ मीहरी पानी बाझ धरती आशक डिठड़े बाझ ना रजदे ने
लख सिरी अवल आवन यार यारां तों मूल ना भजदे ने
भीड़ां पैंदियां मरद बंडा लैदे परदे आशकां दे मरद कजदे ने
दा चोर ते यार दा इक सांयत नहीं वसदे मींह जो गजदे ने
शब्दार्थ
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