भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

309 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई आयके रांझे दे नयन वेखे कोई मुखड़ा वेख सलाहुंदी ए
अड़ियो वेखो ते शान इस जोगड़े दी राह जांदड़े मिरग फहाउंदी ए
छोटी उमर दी दोसती नाल जिसदे दिन चार ना तोड़ निबाहुंदी ए
कोई ओढ़नी<ref>चादर</ref> लाह के मगर पहुंचे धो धा भबूत जा लाहुंदी ए
कोई मुख रंझेटे नाल जोड़े तेरी तबह<ref>तबीयत</ref> की जोगिया चाहुंदी ए
सहती लाड दे नाल चवा<ref>बोल के</ref> करके चा सेलियां जोगी दियां लाहुंदा ए
रांझे पुछया कौन है एह नढी धी अजू दी काई चा आहुंदी ए
अजू वजू छजू फजू अते गजू हुंदा कौन है तां अगों आहुंदी ए
वारस शाह ननाण एह हीर दी ए धी खेड़यां दी बादशाहुंदी ए

शब्दार्थ
<references/>