भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

312 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यों फकर दे नाल रिहाड़ पईए भला बखश सानूं मापे जीनिए नी
सप शीहनी वांग बुलैहनीए नी मास खानीए ते रत पीनीए नी
दुखी जिऊ दुखा ना भाग भरीए होईए चिड़ी ते कूंज लखीनीए नी
साथों निशा ना होसोया मूल तेरी सके खसम तों ना पतीनीए नी
चरखा चाय के नटनी मरद मारे किसे यार ना पकड़ मलीनीए नी
वारस शाह फकीर दे वैर पईए जरम ततीए करमां दीए हीनीए नी

शब्दार्थ
<references/>