भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
325 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
पकड़ ढाल तलवार क्यों गिरद होईए मथा मुनीए करम अभागीए नी
चैंचल हारीये डारिये जंग बाजे छिपर नकीए बुरे दिये लागीए नी
फसाद दी फौज दी पेशवा<ref>आगू</ref> हैं ते शैतान दे लक तड़ागीए नी
असीं जटियां नाल जे झेड़ करीए दुख जूह दे फकर क्यों झागीए नी
मथा डाह नाहीं आ छड पिछा भजे जांदे मगर ना लागीए नी
वारस शाह फकीर दे कदम फड़िये अते किबर हंकार नूं तयागीए नी
शब्दार्थ
<references/>