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342 / हीर / वारिस शाह

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दोस्त सोई जो बिपत विच भीड़ कटे यार सोई जो जान कुरबान होवे
शाह सोई जो काल विच भुख कटे कुल बात दा जो निगाहबान होवे
गां सोई जो सयाल विच दुध देवे सोई बादशाह जो शाहबान<ref>गड़रिया</ref> होवे
नार सोई जो माल बिन जफर जाले पयादा सोई जो भूत समान होवे
इमसाक है असल हफीम बाझों गुस्से बिना फकीर दी जान होवे
सोई रोग जो नाल इलाज होवे तीर सोई जो नाल कमान होवे
कंजर सोई जो गैरतों बाझ होवे जिवें भाबड़ा<ref>एक जाति का नाम</ref> बिना अशनान होवे
कसबा सोई जो वैरी बिन पया वसे जलाद सोई जो मेहर बिन जान होवे
सयद सो जो शूम ना होवे कायर जानी<ref>भोगी</ref> सिआह ते ना कहरवान होवे
चाकर औरतां सदा बेउजर होवन बते आदमी बे नुकसान होवे
कवारी सोई जो करे हया बहुती नीवीं नजर ते बाझ जबान होवे
बिना जंग ते चोर दे मुलक वसे पेट सोई बिन अन्न ते पान होवे
परां जाह तूं भुखया चोबरा वे मतां मंगणों कोई वधान<ref>जुल्म</ref> होवे
वारस शाह फकीर बिन हिरस<ref>भोगी</ref> गफलत याद रब्ब दी विच गलतान होवे

शब्दार्थ
<references/>