भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
370 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
जदों तीक जिमी असमान कायम तदों तीक ए वाह सब वहनगे जी
सभे किबर<ref>घमंड</ref> हंकार गुमान लदे आप विच एह अन्त नूं ढहनगे नी
असराफील<ref>फरिश्ता</ref> जां सूर करनाएं<ref>नाद, कहते हैं कि कयामत के दिन फरिश्ता असराफील जबअपना सुर फूँकेगा तब सारे मुर्दे जाग उठेंगे और अल्लाह उनका इंसाफ करेगा।</ref> फूके तदों सब पसारड़े ढहनगे नी
कुरशी<ref>तखत</ref> अरश ते लोह कलम<ref>तकदीर लिखने वाली कलम</ref> जनत रूह दोजखां सब एह रहनगे नी
कुरआ<ref>पांसा</ref> सुटके प्रशन मैं लावना हां दसां उनां जोउठके बहनगे नी
नाले पतरी खोलके फोल दसां वारस शाह होरी सच कहनगे नी
शब्दार्थ
<references/>