भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
374 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
हीर उठ बैठी पते ठीक लगे अते ठीक नशानियां सारियां ने
एह तां जोतशी पंडत आन मिलया बातां आखदा खूब करारियां ने
पते वंझली दे एस ठीक दिते ओस मझी भी साडियां चारियां ने
वारस शाह एह इलम दा धनी डाढा खोल कहे निशानियां सारियां ने
शब्दार्थ
<references/>