भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

390 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हीर आखदी एस फकीर नूं नी केहा घतयो गैर दा वायदा नी
इनां आजजां नूं पई मारनी ए एस जीवने दा क्या फायदा नी
अल्ला वालयां नाल की बैर चायो भला कुआरीए एह बुरा कायदा नी
पैर चुम्म फकीर दे टहल कीजे एस कम्म विच खैर दा जायदा<ref>मुनाफा</ref> नी
पिछों फड़ेंगी कुतका जोगिड़े दा कौन जानदा केहड़ा जायदा नी
वारस शाह फकीर जे होण गुसे खौफ शहर नूं कहर वबाय<ref>महामारी का प्रकोप</ref> दा नी

शब्दार्थ
<references/>