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जर्जर नौका 
उखड़े हैं मस्तूल 
ज़्धख़्मी हो चुके पाल 
निकल पड़ी 
टूटे–फूटे चप्पू ले 
सागर को रौंदने ! 
1 
इन आँखों में 
निचाट सूनापन 
बसा था बियाबान 
तुम जो आए 
सपने अँखुराए 
वसन्त लहराए। 
2 
अँधेरा घर 
बरसों से था बन्द 
कटे हर सम्बन 
ये कौन आया 
एक दीया जलाया 
आलोक लहराया। 
3 
मन पे छाया 
क्षणिक परिचय 
हुआ जो अनायास 
जादू से बँधा 
चकरी जैसा घूमे 
मन, छाई सुवास। 
4 
खुशबू–भरा 
रूमाल वो तुम्हारा 
आँखों से लगाया 
बन्द हथेली 
यादों की खुल पड़ी 
फैलाती रही माया। 
5 
सिर्फ़ दो आँसू 
जलते छालों पर 
बर्फ़–धुली पाँखुरी 
बिसरा दर्द 
मरहम–सा लगा 
ये किसने रख दी ? 
6 
एकाकी चली 
नाते नहीं बनाए 
सदा रही डरती, 
साँस बन के  
तुम जो आ समाए 
मना कैसे करती? 
7 
विश्वास बोला : 
मैं विजय का गीत 
सफलता से प्रीत 
हँस दी आशा : 
मैं तेरी सहचरी 
तू सदा मेरा मीत। 
8 
हर युद्ध में 
विजय मेरी हुई 
सन्धि मेरी शर्तों पे 
तुम समझे 
वो जीत तुम्हारी थी 
अच्छी दिल्लगी रही ! 
9 
तुम्हें जो देखा 
फूलों से लदा–फँदा 
कोई हरसिंगार 
स्मृति में कौंधा 
होंठ लरज़ उठे 
पर बोल न फूटे। 
10 
तुम्हारी हँसी : 
महक गई डाली 
खिले फूलों से भरी 
पल भर में 
जमा हिम पिघला 
फूटी रस की धारा। 
11 
निश्छल हँसी 
चाँदी की कटोरियाँ 
छन–छन छनकीं 
जल–तरंग 
कोमल सुरों बजी 
उर्मि–पायल सजी। 
12 
भूलते नहीं 
वे हरे–भरे दिन 
चाँदनी–भरी रातें 
दूर जा पड़े 
बचपन के  खेल 
झगड़ों की सौगातें। 
13 
भूलेंगे कैसे 
माँ की गोद छिपे 
शरारती वो दिन 
रबर चुरा 
भैया के  बस्ते में से 
छिपाना, घूँसे खाना। 
14 
भूलेंगे कैसे 
चाँदनी का वो नशा 
पहली बार हुआ 
हँसा था चाँद 
पसीजी हथेली में 
रखके  कोई दुआ। 
15 
चाँद सितारे 
पाने की चाह नहीं 
दूसरी भी हैं राहें 
सब पा गए 
फ़लक पे जा बैठे 
जब से तुम्हें चाहें। 
16 
तुम तो दीप 
फैलाना उजियारा 
बस काम तुम्हारा 
टूटे दिलों में 
हिम्मत भर देते 
वे फिर चल देते ! 
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