भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
415 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
घोल घतिआं यार दे नाम उतों जोगी मुख संभाल हतयारया वे
तेरे नाल की असां है बुरा कीता हथ ला तैनूं नहीं मारया वे
मनों सुनदयां पुने तूं यार मेरा एह कहर कतो लोहड़े मारया वे
रूग आटे दा होर लै जा साथों कोई वधे फसाद बुरयारया वे
तैथे आदमगरी<ref>मानवता</ref> दी गल नाही रब्ब चा बथुन<ref>बेढब्बा शरीर</ref> उसारया वे
वारस किसे असाडे नूं खबर होवे ऐवें मुफत विच जायेगा मारया वे
शब्दार्थ
<references/>