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475 / हीर / वारिस शाह

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घुंड लाह के हीर दीदार दिता रिहा होश ना अकल थी ताक कीता
लंक बाग दा परी ने झाक देके सीना चाक<ref>आजड़ी</ref> दा पाड़ के चाक<ref>लीरो-लीर</ref> कीता
बन्न मापयां जालमां टोर दिती तेरे इशक ने मार गमनाक कीता
मां बाप ते अंग भुला बैठी असां चाक नूं आपणा साक कीता
तेरे बाझ ना किसे नूं अगे लाया गवाह हालदा मैं रब्ब पाक कीता
देख नवी नरोई अयान तेरे सीना साढ़ के बिरहों ने खाक कीता
अला जाणदा ए एहनां आशकां ने मजे जोक ते चा तलाक<ref>विवाह तोड़ना</ref> कीता
वारस शह लैं चलनां तुसां सानूं किस वासते जीउ गमनाक कीता

शब्दार्थ
<references/>