भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
484 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
ससे मल दल सुटिए वाग फुलां झोकां तेरियां मानियां बेलियां नी
किसे जोम<ref>तजरबेकार</ref> भरे फड़के नपिए तू धड़के कालजा पौंदिया त्रेलियां नी
किसे लई हुशनाक ने जीत बाजी पासा लायके बाजीयां खेलया नी
सूबेदार ने किले नूं ढो तोपां कारस जोर रईयतां मेलियां नी
शब्दार्थ
<references/>