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517 / हीर / वारिस शाह

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गंढ<ref>सदा</ref> फिरी रातीं विच खेड़यां दे घरो घरी विचार विचारयो ने
भलके खूह ते जायके करो कुशती इक दूसरे नूं खुम<ref>नाच की एक किस्म</ref> मारयो ने
चलो चल ही करन छनाल-बाजां<ref>बदकार</ref> सभ कम्म ते काज विसारयो ने
बाजी दितीयां ने पिउ बुढयां नूं लिबां<ref>चिकड़</ref> मावां दे मुंह ते मारयो ने
शैतान दियां लशकरां फैल़सूफां<ref>चतुर</ref> बिना आतशी फन खिलारयो ने
गिलती मार लगोटड़े वट टुरियां सभो कपड़ा लतड़ा झाड़यो ने
सबा भन्न भंडार उजाड़ छोपां सने पूनियां पिड़े नूं साड़यो ने
तंग खिच त्यार असवार होइयां कडयालड़े घोड़ियां चाढ़यो ने
राती ला मैंहदी दिने पा सुरमे गुंद चूंडिया कम्म शिंगारयो ने
तेड़ लुंगियां टोकरां देन पिछों चुन कन्नियां लड़ां नूं झाड़यो ने
कजल पूछलां बालड़ां वयाहियां दे होठी सुरख दंदासड़ा चाढ़यो ने
जुलफां पलम पइयां गोरे मुखड़े ते ला बिंदियां हुसन उधाड़यो ने
गलां ठोडियां ते बने खाल दाने रड़े हुसन नूं चा नितारयो ने
खोल छातियां हुसन दे कढ लाटू वारस शाह नूं चा उजाड़यो ने

शब्दार्थ
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