भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
540 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
छड देस जहान उजाड़ मली अजे जट नहीं पिछा छडदे ने
असां छडया एह ना मूल छडन वैरी मुढ कदीम तो हड दे ने
लीही पई मेरे उते झाड़यां दी पास जान नाही पिंज गड दे ने
वारस शाह जहान तों अक पए कल फकीर हुण लद दे ने
शब्दार्थ
<references/>