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542 / हीर / वारिस शाह

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जोगी चलया रूह दी कला हिली तितर बोलया शगन मनावने नूं
ऐतवार ना पुछया खेड़यां ने जोगी आंदा ने सीस मुनावने नूं
वेखो अकल शऊर जो मारया ने तामा<ref>शिकार</ref> बाज दे हथ फड़ावने नूं
भुखा खंड ते खीर दा होया राखा रंडा घलया साक कावने नूं
सप्प मकर दा परी दे पैर लड़या सुलेमान<ref>जो मन्त्र करता है</ref> आया झाड़ा<ref>मन्त्र</ref> पावने नूं
राखा जवां दे ढेर दा गधा होया अन्हा घलया हरफ<ref>अक्षर</ref> लिखावने नूं
नियत खास करके उहनां सद आंदा मियां आया है रन्न खसकावने नूं
उन्हां सप्प दा मांदरी<ref>मन्त्र पढ़ने वाला</ref> सद आंदा सगों आया सप्प लड़ावने नूं
वसदे झुगड़े चैढ़ करावने नूं मुढों पट वूटा लैंदे जावने नूं
वारस बंदगी वासते घलया ए आ लगा ए पहनने खावने नूं

शब्दार्थ
<references/>