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553 / हीर / वारिस शाह
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पहलां बाहरों आन मुरद मिलाया अगे कटक<ref>फौज</ref> बलोचां ने चाढ़ दिते
पकड़ तरकशां<ref>भथे</ref> तीर कमान दौड़े खेड़े नाल हथयारां दे मार दिते
मार बरछियां आन बलोच कड़के तेगां मारके पिंड विच वाड़ दिते
वारस शाह जां रब्ब ने मेहर कीती बदल कहर दे लुतफ<ref>मेहरबानी</ref> ने फाड़ दिते
शब्दार्थ
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