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560 / हीर / वारिस शाह

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रांझे आखया सोहनी रंन डिठी मगर लग मेरे आ घेरया ने
नठा खौफ थीं एह हन देस वाले वेखो कटक अज गैब दा छेड़या ने
पंजां पीरां दी एह मजावरनी<ref>मज़ावरनी हुक्म</ref> ए एहनां किधरों साक सहेड़या ने
सभा राजयां रानयां धक छडया तेरे मुलक विच आनके छोड़या ने
देखो विच दरबार दे झूठ बोलन एह वडा ही फेड़ना फेड़या ने
मजरूह<ref>जख्मी</ref> सां गमां दे नाल भरया मेरा अलड़ा घाओ उचेड़या ने
कोई रोज जहान ते वाओ लैनी मैंनूं मार के चा खदेड़या ने
आप वारसी बने इस बहूटड़ी दे मेरे संग दा संग नखेड़या ने
राजा आखदा करां मैं कतल सारे तेरी चीज नूं जरा जे छेड़या ने
सच आख तूं मारके करां पुरजे कोई बुरा जे एस नाल फेड़या ने

शब्दार्थ
<references/>