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61 / हीर / वारिस शाह
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अजी हीर ते पलंघ सभ थां तेरी घोल घतियां जीऊड़ा वारया ई
नहीं गाल कढी हथ जोड़दी हां हथ ला नाहीं तैनूं मारया ई
असीं मिन्नतां करां ते पैर पकड़ां तैथों धोलया कोड़मा<ref>खानदान</ref> सारया ई
असां हस के आन सलाम कीता आप कासनूं मकर पसारया ई
सुन्नी पई सां त्रिंजणी चैन नाहीं अल्ला वालयां नेसानूं तारया ई
वारस शाह है कौन शरीक उसदा जिसदा रब्ब ने कम्म सवारया ई
शब्दार्थ
<references/>