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66 / हीर / वारिस शाह

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नाल नढियां घिन्न के चरखड़े नूं तुसां बैठणा विच भंडार हीरे
असीं आणके रूलांगे विच वेहड़े साडी कोई न लएगा सार हीरे
टिकी देके वेहड़ियों कढ छडें सानूं ठग के मूल न मार हीरे
साडे नाल जे औड़ निबाहुणी ए सच्चा देह खा कौल इकरार हीरे

शब्दार्थ
<references/>