700 बुद्धिजीवियो की एक तेल की टंकी से प्रार्थना / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य
1
बिना न्योते के
हम आ पहुँचे हैं
700 (और बहुतेरे अभी राह पर हैं)
हर कहीं से, जहाँ अब हवा नहीं बहती है
चक्कियों से, जो पस्त पीसती जाती हैं, और
अलावों से, जिनके बारे में कहा जाता है
अब वहाँ कुत्ता भी मूतने नहीं जाता।
2
और हमने तुम्हें देखा
अचानक
ओ तेल की टंकी!
3
अभी कल ही तुम नहीं थी
लेकिन आज
बस तुम ही तुम हो।
4
जल्दी करो, लोगो!
उस डाल को काटने वाले, जिस पर तुम बैठे हो
कामगारो!
भगवान फिर से आ चुके हैं
तेल की टंकी के भेस में।
5
ओ बदसूरत!
तुमसे ख़ूबसूरत कोई नहीं।
चोट करो हम पर
ओ समझदार !
ख़त्म कर दो मैं की भावना!
हमें समूह बना डालो!
वैसा कतई नहीं, जैसा हम चाहते हैं :
बल्कि जैसा कि तुम चाहती हो।
6
तुम हाथीदाँत की नहीं बनी हो
आबनूस की भी नहीं, बल्कि
लोहे की!
लाजवाब! लाजवाब! लाजवाब!
तुम निरभिमान!
7
तुम अदृश्य नहीं
तुम अनंत नहीं !
तुम सात मीटर ऊँची हो।
तुम में कोई रहस्य नहीं
बल्कि तेल है।
और हमसे तुम्हारा नाता
भावनात्मक या दुर्बोध नहीं
बल्कि हिसाब के बिल के मुताबिक है।
8
घास क्या है तुम्हारे लिए?
तुम उस पर बैठती हो।
जहाँ कभी घास थी
अब तुम विराजमान हो, ओ तेल की टंकी!
और भावनाएँ तुम्हारे लिए
कुछ भी नहीं हैं!
9
इसलिए हमारी सुनो
और हमें चिंतन के पाप से मुक्ति दिलाओ।
बिजलीकरण के नाम पर
प्रगति और आंकड़ों के नाम पर।
रचनाकाल : 1927
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य