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82 / हीर / वारिस शाह
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हीर गई जां नदी ते लैण पानी कैदो आन के मुख वखांवदा ए
असीं भुख ने मार हैरान कीते आन सवाल खुदाय दा पांवदा ए
रांझा पुछदा हीर नूं एह लंगा हीरे कौन फकीर किस थांवदा ए
वारस शाह मिआं जिवें पुछ के ते कोई उपरों लून चा लांवदा ए
शब्दार्थ
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