http://kavitakosh.org/kk/api.php?action=feedcontributions&user=Anupama+Pathak&feedformat=atomKavita Kosh - सदस्य योगदान [hi]2024-03-29T09:04:24Zसदस्य योगदानMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%8F%E0%A4%95_%E0%A4%AA%E0%A4%97%E0%A4%B2%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80_/_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B5&diff=292782एक पगली नदी / दिनेश श्रीवास्तव2021-11-27T19:07:17Z<p>Anupama Pathak: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=दिनेश श्रीवास्तव<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
मेरे गाँव के पास <br />
बहती थी एक नदी<br />
वह गंगा नहीं थी, यमुना नहीं थी।<br />
न थी गोदावरी या सरस्वती।<br />
और तो और <br />
वह नर्मदा, सिंधु या कावेरी भी नहीं थी।<br />
<br />
वह थी बस एक<br />
सीधी, सादी, भोली सी नदी-<br />
तभी तो शायद हमारे पुरखों ने<br />
प्यार से उसे नाम दिया था- पगली।<br />
<br />
पगली भादों में उफनती थी<br />
खूब सारा झाग उगलती<br />
बड़े-बड़े पेड़ों को उखाड़ती,<br />
और बड़े-बड़े भंवरों में उन्हें नचाती<br />
और ठठाती हुई उन्हें बहोर कर ले जाती-<br />
बड़ी बहन के पास।<br />
<br />
उसकी बड़ी बहन-<br />
वाल्मीकि ने प्यार से उसका नाम दर्ज किया था<br />
रामायण में- स्यन्दिका।<br />
पगली उस समय भी रही होगी-<br />
पर राम की राह में बाधा न बनी-<br />
और प्रसिद्ध न हो पायी स्यन्दिका की तरह।<br />
<br />
पर पगली,<br />
पगली थी न।<br />
युगों तक पगली बहती रही<br />
और हमारे दुःख-दर्द, हमारे सपने,<br />
हमारी प्रार्थनायें जाने किस किससे कह कर<br />
गंगा के हाथों सागर तक पहुंचाती रही।<br />
<br />
माघ में पगली सकुचाती थी।<br />
लाज से सिकुड़ जाती थी।<br />
और कोहरे की चादर ओढ़ <br />
मंथर गति से चलती,<br />
गोद में मछलियाँ लिए,<br />
चली जाती बड़ी बहन के पास।<br />
जेठ की दुपहरिया में<br />
पगली बच्चों के साथ खिलखिलाती<br />
पथिकों की प्यास बुझाती,<br />
गाँव की बहुओं को छेड़ती,<br />
और बेटियों को दुलारती।<br />
<br />
खूब दुबली होकर भी-<br />
पहुँच जाती थी बड़ी बहन के पास।<br />
पगली थी न।<br />
उसकी राह तय न थी।<br />
हर साल नयी राह बनाती थी।<br />
कुछ पुराने खेत काट देती।<br />
कुछ नए मैदान दे देती।<br />
कहीं बालू, और कहीं उर्वरा धरती देती<br />
इठलाती, बलखाती,<br />
उफनती, खिलखिलाती,<br />
सकुचाती बहती रही युगों तक।<br />
<br />
कहीं जाने पर <br />
साथ-साथ दूर तक चलती<br />
और उसके ऑंसू मेरी आँखों से झरते।<br />
<br />
लौट कर आने पर दूर से ही भाग कर<br />
आ लगती गले से,<br />
और पल भर में सारी थकान<br />
सारी चिंताएं, सारे दुःख विलीन हो जाते थे।<br />
<br />
यही तो करती रही थी पगली युगों से-<br />
यही तो किया था उसने मेरे पिता के साथ<br />
और उसके पहले उनके पिता के साथ,<br />
और युगों से पीढ़ी दर पीढ़ी सारे पिताओं के साथ।<br />
फिर न जाने क्या हुआ-<br />
जाने कहाँ से आये लोग-<br />
उन्होंने पगली से सारा अमृत ले<br />
उसकी धारा को जहर से पाट दिया।<br />
<br />
पहले तो पगली<br />
घावों से भरी, खजही कुतिया की तरह<br />
भिनकती मख्खियों से घिरी कुनमुनाती हुई<br />
भटकती रही।<br />
और फिर एक दिन सो गयी-<br />
हमेशा के लिए।<br />
<br />
पर कभी कभी रातों में<br />
दर्द से भरी उसकी चीख गूँजती है-<br />
<br />
मेरे बच्चों<br />
मेरे पास न आना।<br />
पर मेरे बच्चों <br />
मुझे भूल न जाना।<br />
मैंने तुमसे और <br />
तुम्हारे पुरखों से प्यार किया था।<br />
<br />
<br />
रचनाकाल : फ्रैंकफुर्ट, जर्मनी, नवंबर २०१७<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B5&diff=292757दिनेश श्रीवास्तव2021-11-27T18:55:01Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKParichay<br />
|चित्र=Dinesh-srivastav-kavitakosh.jpg<br />
|नाम=दिनेश श्रीवास्तव <br />
|उपनाम=<br />
|जन्म=04 नवम्बर 1952 <br />
|जन्मस्थान=पिरथीगंज, प्रतापगढ़, [[उत्तर प्रदेश]], भारत <br />
|कृतियाँ= <br />
|विविध=<br />
|जीवनी=[[दिनेश श्रीवास्तव / परिचय]]<br />
|अंग्रेज़ी नाम=Dinesh Srivastav, Dinesh Shrivastava<br />
|shorturl=<br />
|gadyakosh=<br />
|copyright=<br />
}}<br />
{{KKCatUttarPradesh}}<br />
====प्रतिनिधि रचनाएँ====<br />
* [[सुनो सती! / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[कोरोना के प्रथम चरण में / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[सुनो उतथ्य! / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[सुनो ताड़का / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[सुनो मीनाक्षी! / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[हम न तुमसे अब कभी मिल पाएंगे / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[गाने लगेंगे प्रेम-गीत पाहन / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[सुवासित रश्मियाँ / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[आओ माँ / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[तिरंगे में लिपटा अभिमन्यु / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[प्राची की त्रासदी / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[बदल गए क्या नियम जीवन के? / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[माफ़ीनामा / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[लक्ष्मी तू न आयी / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[पूजा का अंत / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[एक पूजा फिर / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[आत्म बोध / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[ओ री मानवता! तू तो रक्तबीजी है !! / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[इंतज़ार / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[स्वयंवर / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[रोज़ की बात / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[जंग जारी है / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[सौन्दर्यानुभूति / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[आपातकालीन निकास-द्वार / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[सूखती जड़ें / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[कर्जे का बोझ / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[पत्ता टूटा डाल से / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[प्रगति का राज-पथ / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[सिलसिला / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[अफवाहों के सहारे / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[कल के समाचार / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[मुरझा गए सब फूल / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[भ्रम भंग / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[कटी बाँहों का गीत / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[एक नीलकंठ की मौत / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[अस्थियों का वज्र / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[बाढ़ / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[गायें / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[यह शहर नहीं मेरा घर है / दिनेश श्रीवास्तव]]<br />
* [[एक पगली नदी / दिनेश श्रीवास्तव]]</div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AF%E0%A4%B9_%E0%A4%95%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AC_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC_/_%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8&diff=292367यह कदम्ब का पेड़ / सुभद्राकुमारी चौहान2021-11-04T00:53:17Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=सुभद्राकुमारी चौहान<br />
}}<br />
[[Category:बाल-कविताएँ]]<br />
{{KKCatKavita}}<br />
{{KKPrasiddhRachna}}<br />
<poem><br />
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। <br />
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥ <br />
<br />
ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली। <br />
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥ <br />
<br />
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता। <br />
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता॥ <br />
<br />
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता। <br />
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता॥ <br />
<br />
सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती।<br />
मुझे देखने काम छोड़ कर तुम बाहर तक आती॥<br />
<br />
तुमको आता देख बांसुरी रख मैं चुप हो जाता।<br />
पत्तों में छिपकर धीरे से फिर बांसुरी बजाता॥<br />
<br />
गुस्सा होकर मुझे डांटती, कहती "नीचे आजा"।<br />
पर जब मैं ना उतरता, हंसकर कहती "मुन्ना राजा"॥<br />
<br />
"नीचे उतरो मेरे भैया तुम्हें मिठाई दूंगी।<br />
नए खिलौने, माखन-मिसरी, दूध मलाई दूंगी"॥<br />
<br />
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता। <br />
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता॥ <br />
<br />
तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे। <br />
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे॥ <br />
<br />
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता। <br />
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता॥ <br />
<br />
तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती। <br />
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं॥ <br />
<br />
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे। <br />
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे॥ <br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%86%E0%A4%AA_%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A4%97_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A5%87_/_%E0%A4%86%E0%A4%A8_%E0%A4%AF%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1&diff=240872आप हमें अलग नहीं कर सकते / आन येदरलुण्ड2017-12-20T15:31:43Z<p>Anupama Pathak: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आन येदरलुण्ड |अनुवादक=अनुपमा पाठ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=आन येदरलुण्ड<br />
|अनुवादक=अनुपमा पाठक <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
लाल और भूरा रंग आपस में नहीं मिलते <br />
लेकिन दोनों समान हैं <br />
<br />
हर एक बाधा से और करीब आते हैं <br />
आप हमें अलग नहीं कर सकते <br />
<br />
'''मूल स्वीडिश से अनूदित'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A4%AA%E0%A4%A8_/_%E0%A4%86%E0%A4%A8_%E0%A4%AF%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1&diff=240871बचपन / आन येदरलुण्ड2017-12-20T15:31:31Z<p>Anupama Pathak: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आन येदरलुण्ड |अनुवादक=अनुपमा पाठ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=आन येदरलुण्ड<br />
|अनुवादक=अनुपमा पाठक <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
बचपन लुप्त सा धूमिल हो रहा है <br />
बड़ी देर तक शांत पड़ी रही मैं <br />
श्वेत ताबूत से पत्तों की मीठी खुशबू आ रही है <br />
मिठास की सुगंध से संतृप्त <br />
<br />
बचपन लुप्त सा अँधेरे में ओझल हो रहा है <br />
घड़ियाँ चट्टान के रूप में ढल रही हैं <br />
घड़ियाँ जिन्हें आपको वैसे भी त्यागना ही है<br />
गाल के खुले क्षिद्रों से प्यारी खुशबू आ रही है <br />
<br />
'''मूल स्वीडिश से अनूदित'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE_%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A5%8B_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A4%BE_/_%E0%A4%86%E0%A4%A8_%E0%A4%AF%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1&diff=240870चन्द्रमा आपको नहीं चाहता / आन येदरलुण्ड2017-12-20T15:31:20Z<p>Anupama Pathak: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आन येदरलुण्ड |अनुवादक=अनुपमा पाठ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=आन येदरलुण्ड<br />
|अनुवादक=अनुपमा पाठक <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
क्या आप चन्द्रमा को देख पा रहे हैं<br />
चन्द्र किरणें आपको देख रही हैं<br />
एक बकसुआ चाँद को छिपा सकता है<br />
शायद आपके पास वह अंडाकृति न हो<br />
चन्द्र किरणें आपको देख रही हैं<br />
क्या आप चन्द्रमा को देख पा रहे हैं<br />
चन्द्र किरणों को तो बकसुए से अलग पहचाना ही जा सकता है<br />
वो उजली किरण आप सी नहीं है<br />
चन्द्रमा आपको नहीं चाहता.<br />
<br />
'''मूल स्वीडिश से अनूदित'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%86%E0%A4%A8_%E0%A4%AF%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1&diff=240869आन येदरलुण्ड2017-12-20T15:24:19Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKParichay<br />
|चित्र=Ann-Jäderlund.JPG <br />
|नाम=आन येदरलुण्ड<br />
|उपनाम= <br />
|जन्म=1955<br />
|मृत्यु=<br />
|जन्मस्थान=स्टॉकहोम, स्वीडन <br />
|कृतियाँ= Vimpelstaden (१९८५) Snart går jag i sommaren ut (१९९०), I en cylinder i vattnet av vattengråt (२००६). <br />
|विविध= वर्ष २००४ में साहित्य के Dobloug पुरस्कार से सम्मानित<br />
|जीवनी=[[आन येदरलुण्ड / परिचय]]<br />
}}<br />
* [[बचपन / आन येदरलुण्ड]]<br />
* [[आप हमें अलग नहीं कर सकते / आन येदरलुण्ड]]<br />
* [[चन्द्रमा आपको नहीं चाहता / आन येदरलुण्ड]]</div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%97%E0%A4%A4%E0%A4%BF_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240864गति / अदोनिस2017-12-20T14:34:29Z<p>Anupama Pathak: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अदोनिस |अनुवादक=अनुपमा पाठक |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस<br />
|अनुवादक=अनुपमा पाठक <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
मैं अपने शरीर के बाहर यात्रा करता हूँ, और मेरे भीतर ऐसे महाद्वीप हैं <br />
जिन्हें मैं नहीं जानता. मेरा शरीर <br />
अपने बाहर एक शाश्वत गति है.<br />
मैं नहीं पूछता: कहाँ से? या कहाँ थे तुम? मैं पूछता हूँ, कहाँ जाता हूँ मैं? <br />
रजकण मुझे देखते हैं और परिवर्तित कर देते हैं रजकण में,<br />
जल देखता है मुझे और अपना सहजात बना लेता है.<br />
<br />
वास्तव में, कुछ भी शेष नहीं बचता गोधूलि बेला में सिवाए स्मृतियों के. <br />
<br />
<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A7_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240863अवरोध / अदोनिस2017-12-20T14:34:07Z<p>Anupama Pathak: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अदोनिस |अनुवादक=अनुपमा पाठक |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस<br />
|अनुवादक=अनुपमा पाठक <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
हमारे बीच है एक अवरोध--<br />
<br />
अवरोध रक्त का <br />
अवरोध ऊँचाई का <br />
<br />
बंजर हवा से <br />
और प्रकाशहीन ग्रहों से <br />
<br />
एक अवरोध जो लिखता है मृत्यु और प्रेम को एक ही प्राकृत भाषा में <br />
एक अवरोध निरीह आकांक्षा का <br />
<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%87%E0%A4%B8_%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A3_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240862इस क्षण में / अदोनिस2017-12-20T14:32:55Z<p>Anupama Pathak: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अदोनिस |अनुवादक=अनुपमा पाठक |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस<br />
|अनुवादक=अनुपमा पाठक <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
क्या खोया हमने, क्या हममें खो चुका था?<br />
वो फासले किसके हैं जिसने दूर किया था हमें <br />
और जो अभी हमें जोड़ रहा है?<br />
<br />
क्या हम अब भी एक हैं <br />
या हम टुकड़ों में बंट चुके हैं? ये धूल किंतनी भली है <br />
इसकी उपस्थिति, और मेरा होना, अभी इस क्षण में <br />
एक से हैं.<br />
<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240861अदोनिस2017-12-20T14:32:43Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKParichay<br />
|चित्र=अडोनिस सीरियाई कवि.jpg <br />
|नाम=अली अहमद सईद असबार <br />
|उपनाम=अदोनिस <br />
|जन्म=01 जनवरी 1930<br />
|मृत्यु=<br />
|जन्मस्थान=अल-क़स्बिन, लताकिया, सीरिया। <br />
|कृतियाँ=बीस कविता-संग्रह। यदि सिर्फ़ समुद्र सो पाता, रात और दिन के पन्ने, अदोनिस का ख़ून, दमिश्क और मिहयार के गीत आदि। <br />
|विविध=अरबी भाषा के जाने-माने कवि। सन 2011 के ग्रिफ़ीन काव्य-पुरस्कार के लिए नाम प्रस्तावित। <br />
|जीवनी=[[अदोनिस / परिचय]]<br />
}}<br />
'''मनोज पटेल द्वारा अनूदित'''<br />
* [[बीसवीं सदी के लिए एक आईना / अदोनिस]]<br />
* [[बादलों के लिए एक आईना / अदोनिस]]<br />
* [[पेड़-1 / अदोनिस]]<br />
* [[पेड़-2 / अदोनिस]]<br />
* [[पेड़-3 / अदोनिस]]<br />
* [[एक भाषा ख़ुशी की / अदोनिस]]<br />
* [[चलो लौट चलें / अदोनिस]]<br />
* [[मैं तुम्हें प्यार न करता / अदोनिस]]<br />
* [[मैंने मापा ख़ुद को / अदोनिस]]<br />
* [[हर प्यार एक विपदा है / अदोनिस]]<br />
* [[कोई कहानी नहीं जो चल रहा है हमारे बीच / अदोनिस]]<br />
* [[शायद प्यार नहीं है धरती पर / अदोनिस]]<br />
'''अशोक पाण्डे द्वारा अनूदित'''<br />
* [[न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-1 / अदोनिस]]<br />
* [[न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-2 / अदोनिस]]<br />
* [[न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-3 / अदोनिस]]<br />
* [[न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-4 / अदोनिस]]<br />
* [[न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-5 / अदोनिस]]<br />
* [[न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-6 / अदोनिस]]<br />
* [[न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-7 / अदोनिस]]<br />
* [[न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-8 / अदोनिस]]<br />
* [[न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-9 / अदोनिस]]<br />
* [[न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-10 / अदोनिस]]<br />
'''अनुपमा पाठक द्वारा अनूदित'''<br />
* [[इस क्षण में / अदोनिस]]<br />
* [[अवरोध / अदोनिस]]<br />
* [[गति / अदोनिस]]</div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82_%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240860मैं तुम्हें प्यार न करता / अदोनिस2017-12-20T13:46:53Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
मैं तुम्हें प्यार न करता अगर एक बार नफ़रत न की होती तुमसे <br />
एक, बहुसंख्यक है उसके बदन में <br />
<br />
आह, कितना गहरा है प्यार अपनी नफ़रत में <br />
आह, कितनी गहरी है नफ़रत अपने प्यार में <br />
<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A8%E0%A5%87_%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE_%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%A6_%E0%A4%95%E0%A5%8B_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240859मैंने मापा ख़ुद को / अदोनिस2017-12-20T13:46:21Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
मैंने मापा ख़ुद को अपने ख़यालों की स्त्री से <br />
बाहर निकला उसकी तलाश में <br />
मगर कुछ भी न मिला जिससे मिल सके उसका कोई सुराग -- <br />
कोई पुल नहीं था <br />
मेरी देह और मेरे ख़्वाब के बीच <br />
<br />
इस तरह मैं रहने लगा अपने ख़यालों में <br />
इस तरह दोस्त बन गए मैं और फ़रेब <br />
<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B9%E0%A4%B0_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%8F%E0%A4%95_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A5%88_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240858हर प्यार एक विपदा है / अदोनिस2017-12-20T13:46:01Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
"हर प्यार एक विपदा है" -- <br />
या जैसा कि इसके कुछ दीवानों ने कहा है <br />
"प्यार में ख़ुशी एक धोखा है"<br />
<br />
मैं कुछ पाने के लिए प्यार नहीं करता -- <br />
कोई मुखौटा या झंडा नहीं है मेरा प्यार <br />
मेरा प्यार जैसे बहता है एक झरना <br />
जैसे चमकता है सूरज <br />
मेरा प्यार : एक सैलाब निरुद्देश्य <br />
<br />
धोखा नहीं है मेरा प्यार <br />
विपदा नहीं है मेरा प्यार <br />
<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%88_%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%9C%E0%A5%8B_%E0%A4%9A%E0%A4%B2_%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A5%88_%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87_%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%9A_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240857कोई कहानी नहीं जो चल रहा है हमारे बीच / अदोनिस2017-12-20T13:45:41Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
कैसे कह सकता हूँ कि व्यतीत हो चुका है जो कुछ है हमारे बीच ?<br />
<br />
"कोई कहानी नहीं जो चल रहा है हमारे बीच <br />
कोई सेब नहीं किसी इंसान या जिन्न का <br />
किसी मौसम की कोई पहचान नहीं <br />
या कोई जगह <br />
इतिहास होने लायक कोई चीज़ नहीं" <br />
यही कहते हैं <br />
हमारे भीतर के उलट-फेर <br />
<br />
फिर कैसे कह सकता हूँ मैं कि <br />
हमारे प्रेम का गला घोंट दिया है वक़्त के झुर्रीदार हाथों ने <br />
<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A6_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%B9%E0%A5%88_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A4%B0_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240856शायद प्यार नहीं है धरती पर / अदोनिस2017-12-20T13:45:23Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
शायद <br />
प्यार नहीं है धरती पर <br />
सिवाय उसके, जिसके बारे में हम सोचा करते हैं <br />
हम जीतेंगे <br />
किसी दिन <br />
<br />
रुको नहीं <br />
जारी रखो नृत्य, मेरी प्रिय, मेरी कविता <br />
<br />
भले ही मौत हो सामने<br />
<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A5%8B_%E0%A4%B2%E0%A5%8C%E0%A4%9F_%E0%A4%9A%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%82_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240855चलो लौट चलें / अदोनिस2017-12-20T13:44:48Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
चलो लौट चलें <br />
उन गलियों में जहाँ हम भटका करते थे <br />
जहाँ हमने दुनिया बसते देखा <br />
अपनी साँसों की झीलों में <br />
और वक़्त आया-जाया करता था टूटी हुई खिड़कियों से <br />
<br />
हम घूमते थे अपनी बर्बादी के खंडहरों में, अपनी नादानियों के आईने में <br />
बेजान कागज़ के शब्दकोषों में <br />
और कोई निशान नहीं छोड़ते थे हमारे क़दम <br />
<br />
चलो फिर से चलें <br />
अपने बेहतर दिनों के बगीचे में <br />
<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%8F%E0%A4%95_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE_%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A5%80_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240854एक भाषा ख़ुशी की / अदोनिस2017-12-20T13:44:19Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
आह, नहीं <br />
मैं नहीं चाहता कि मेरी आँखें तैरें <br />
उसकी आँखों के अलावा और किसी जगह <br />
नहीं <br />
नहीं चाहता कि शुद्ध हो जाए मेरा प्रेम और उसकी मिल्कियत <br />
नहीं चाहता कोई सम्बन्ध, कोई कुनबा या पहचान <br />
<br />
चाहता हूँ एक भाषा होना ख़ुशी की <br />
एक अक्षर देह के अंग-प्रत्यंग का <br />
<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC-3_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240853पेड़-3 / अदोनिस2017-12-20T13:43:12Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
मैनें तुमसे कहा - जागो ! मैनें पानी देखा <br />
जैसे कोई बच्चा चरा रहा हो हवा और पत्थर ।<br />
और मैनें कहा - पानी और फल के नीचे <br />
गेहूँ के दानों की सतह के नीचे <br />
एक फुसफुसाहट है जो ख़्वाब देखती है <br />
ज़ख़्म के लिए एक गीत होने का <br />
भूख और रुलाई की हुकूमत में... <br />
<br />
जागो, मैं पुकार रहा हूँ तुम्हें । क्या तुम पहचान नहीं रहे आवाज़ ?<br />
मैं तुम्हारा भाई अल-खिद्र<ref>पैगम्बर और पीरों का मार्गदर्शक, विशेष रूप से सूफ़ियों का पूज्य</ref> हूँ । <br />
काठी कस लो मौत की घोड़ी की, <br />
वक़्त के दरवाज़े को उखाड़ दो उसकी चौखट से । <br />
<br />
{{KKMeaning}}<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC-2_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240852पेड़-2 / अदोनिस2017-12-20T13:42:21Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
कभी भाला लेकर नहीं चला मैं, न ही कभी <br />
काटा कोई सर,<br />
गर्मियों और सर्दियों में <br />
मैं गौरैया की तरह चला जाता हूँ उड़कर <br />
भूख की नदी की ओर, पानी से बनी इसकी जादुई सरहदों की ओर । <br />
<br />
मेरी हुक़ूमत बनाती है पानी का रूप । <br />
मैं राज करता हूँ गैरहाज़िरी पर । <br />
राज करता हूँ ताज्जुब और तकलीफ़ में, <br />
साफ़ मौसम और तूफ़ानों में । <br />
<br />
कोई फ़र्क नहीं पड़ता मैं नज़दीक आऊँ या दूर चला जाऊँ । <br />
मेरी हुकूमत है रोशनी में <br />
और धरती है मेरे घर का दरवाज़ा । <br />
<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC-1_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240851पेड़-1 / अदोनिस2017-12-20T13:41:52Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
उसे नहीं पता कि कैसे सँवारा जाए तलवारों को <br />
क्षत-विक्षत अंगों से ।<br />
उसे नहीं पता कि कैसे बनाया जाए <br />
अपने दाँतों को चमकता-दमकता । <br />
वे खोपड़ियों और ख़ून की नदी से आए हैं उसके पीछे <br />
और फाँद चुके हैं नीची दीवार <br />
और वह दरवाज़े के पीछे है <br />
(वह सपना देखता है कि दरवाज़े के पीछे वह अभी बच्चा ही है) <br />
भूखे शख़्स की आख़िरी क़िताब पढ़ते हुए । <br />
<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F_%E0%A4%8F%E0%A4%95_%E0%A4%86%E0%A4%88%E0%A4%A8%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240850बादलों के लिए एक आईना / अदोनिस2017-12-20T13:41:16Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
पँख <br />
मगर मोम के बने <br />
और बारिश नहीं है यह गिरता हुआ पानी <br />
ये जहाज हैं जो खे कर ले जाएँगे हमारे आँसुओं को । <br />
<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F_%E0%A4%8F%E0%A4%95_%E0%A4%86%E0%A4%88%E0%A4%A8%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8&diff=240849बीसवीं सदी के लिए एक आईना / अदोनिस2017-12-20T13:39:32Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अदोनिस <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
[[Category:अरबी भाषा]]<br />
<Poem><br />
एक बच्चे के चेहरे का रूप धरे कोई ताबूत, <br />
एक क़िताब <br />
किसी कौवे की आँतों के भीतर लिखी हुई, <br />
एक जानवर लस्त-पस्त चलता कोई फूल लिए हुए, <br />
एक पत्थर <br />
किसी पागल के फेफड़ों के भीतर साँस लेता हुआ. <br />
यही है ।<br />
यही तो है बीसवीं सदी । <br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240848महाकाव्य / अर्चना कुमारी2017-12-20T13:34:39Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
एक सवाल है-<br />
क्या तुम ज़िन्दा हो!<br />
<br />
रुको पलट कर मत देखो<br />
डायरी के पन्ने<br />
<br />
साँसों की गिनतियाँ<br />
कोई नही लिखता<br />
<br />
अतीत की घुमावदार पगडंडियाँ <br />
भविष्य के किसी शहर नहीं जाती<br />
<br />
वर्तमान एक अख़बार है<br />
सुबह का<br />
जिसमें दर्ज पल-पल की खबर<br />
बासी पड़ती जाती है आने वाले घंटों में<br />
<br />
तुम्हारी प्रतीक्षा<br />
एक प्रतिप्रश्न है प्रश्न से<br />
उत्तर लम्बी यात्रा पर है<br />
<br />
समय की वीथियों में<br />
तुम भ्रमित हो<br />
सब शाश्वत चिरंतन है<br />
नश्वरता में समाहित है<br />
नवीन रचनाओं का उत्स<br />
<br />
महाकाव्य फिर लिखे जाएंगे।<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A7_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240847प्रतिरोध के शब्द / अर्चना कुमारी2017-12-20T13:32:32Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
डरती हुई खामोशियाँ <br />
पहनकर लफ्जों का मन<br />
निर्भीक होकर दौड़ती हैं<br />
अंधेरी सुरंगों में एक उम्मीद नन्ही सी<br />
उजालों का सफर आसान करती हुई<br />
<br />
भीड़ से डरता मन<br />
रखता है उंगलियों भर किस्से<br />
गिनतियों भर लोग<br />
कदमों भर दुनिया<br />
नजर भर आकाश<br />
मुठ्ठी भर ज़िन्दगी <br />
<br />
तन्हा चल रहे लोग<br />
हारे हुए हों, जरूरी नहीं होता<br />
नहीं होता जरूरी<br />
कि सवालों के जवाब तुरंत ही गढ़ें जाएँ <br />
कि प्रतिरोध में डाल दिए जाएँ हथियार<br />
समय सिद्ध करेगा किसी दिन<br />
शब्द-सामर्थ्य, शक्ति<br />
<br />
विरोध में स्वर मुखर हों, मौन नहीं...<br />
प्रतिरोध का प्रतिदर्श<br />
शब्द, शब्द और शब्द।<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240846वितान / अर्चना कुमारी2017-12-20T13:31:04Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem>भूलक्कड़ हो रहा है दिन<br />
तपते छत के नीचे<br />
<br />
तृषा और तृप्ति के मध्य<br />
पृष्ठ गिने जा रहे हैं किताबों के<br />
<br />
शब्दों में अन्तस्थ भाव जल <br />
उतर कर दृगों में<br />
शीर्षक की गिनती भिगोते हैं<br />
<br />
ठहरने में भय है<br />
डूब जाने का<br />
किनारे-किनारे नदी के<br />
रोपती हूँ मन<br />
<br />
बहुत सी कही गयी बातों में<br />
अनकहा सा कुछ नहीं<br />
सुनने जैसी तरलताओं में<br />
अंकन की दृश्यता का गीत है<br />
तुम हो<br />
<br />
जब कहीं छूट जाएँ शब्द<br />
विस्मृत हो जाए भाव<br />
उलट-पुलट हो जाए गिनती की संख्या<br />
विस्तार का कोई अवयव कम लगे<br />
केवल इतना याद रखना<br />
कि समवेत स्वर में कहा है<br />
प्रेम हमने<br />
<br />
तुम्हारे दीर्घ में वितान पा रहा है<br />
मेरा ह्रस्व!</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%AA%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240845पहाड़ का पठार होना / अर्चना कुमारी2017-12-20T13:27:22Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
रात के पहाड़ को काटकर<br />
सपने पठार होंगे<br />
उपजेंगी सीढ़ीनुमा खेतों में<br />
दर्द की फसलें<br />
चरवाहा गीत गाएगा<br />
गड़ेरिया हाँक ले जाएगा<br />
अपनी भेड़ें<br />
खूटे से बंधी गाय की आँखों में<br />
हरियाली तैरकर बहती होगी<br />
रंभाते बछड़ों के सुर में<br />
अवसान से पूर्व का आलाप होगा<br />
हाथ की उभरी लकीरों का दाग<br />
घिसकर मिटाएगी<br />
ज़िंदगी समय के पत्थर पर<br />
दीवारों से सर टकराते लोग<br />
नहीं ठहरेंगे किसी मोड़ पर<br />
किसी इंतजार में<br />
औपचारिकताओं की धुँध ने<br />
काटी संवेदना की साँस<br />
कि मैय्यत में जाते हुए भी<br />
सुविधा नहीं भूलता आदमी<br />
पाँव की पीठ पर<br />
उकेरना नींद<br />
वहम को थपकियाँ देना<br />
सुनाना लोरियाँ मन के बहरेपन को<br />
कि फिर जागती देह का जागना<br />
पठार से पहाड़ होकर.<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B5_%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A5%8D_/_%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF&diff=240683कर्ममेव जीवनम् / सत्यनारायण पांडेय2017-12-14T10:46:01Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=सत्यनारायण पांडेय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatSanskritRachna}}<br />
<poem><br />
कर्मं बिना जीवनं कथम्<br />
कर्मं बिना भाग्योऽपि कुतः स्यात्<br />
कर्मं बिना सौख्यं कथम्<br />
अतः कर्मकरनीयमेव जनैः।<br />
<br />
कर्मं बिना न भवति किञ्चित्<br />
कर्मं बिना भोजनमपि दुर्लभम्<br />
भोजनं बिना शरीरं कथम्<br />
अतः कर्मकरनीयमेव जनैः।<br />
<br />
कर्ममेव निर्माति भाग्यं सदा<br />
शुभफलाकांक्षी शुभकर्मं करोतु मुदा <br />
कर्मं बिना जीवनं कथम्<br />
अतः कर्मकरनीयः सदा।<br />
<br />
दुष्कर्माणि दुखदा सदा<br />
अतः त्याज्यं बलपूर्वकम्<br />
सत्कर्मो रक्षति दुख्खात्<br />
सत्कर्मो भवति वंशरक्षकः<br />
कर्मं बिना जीवनं कथम्<br />
अतः कर्माणि करनीयमहर्निशम्।<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D_%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%8D_/_%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF&diff=240682संस्कृतम् सदा सेवनीयम् / सत्यनारायण पांडेय2017-12-14T10:40:09Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=सत्यनारायण पांडेय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatSanskritRachna}}<br />
<poem><br />
संस्कृतम् सर्वदा सेवनीयं जनैः<br />
संस्कृतैव सन्निहितास्माकं संस्कृतिः <br />
संस्कृतम् बिना संस्कृतिर्नैव नः स्यात्<br />
अतः संस्कृतम् रक्षणीयं प्रयत्नतः।<br />
<br />
वेदादिप्राचीनग्रन्थादिकम्<br />
उपनिषदाः, पुराणादिकम् <br />
रामायणमहाभारतादिकमपि<br />
संस्कृते सन्निहिता गुम्फिता <br />
नीतिनिर्धारकं मनुस्मृत्यादिकम्<br />
षोडशसंस्कारादिकृत्याः <br />
संस्कृतैव सम्पादितम्<br />
अतः संस्कृतम् सदा सेवनीयं जनैः।<br />
<br />
कालिदासस्य भारवेः माघस्य वा<br />
काव्यानि संस्कृतैव सन्निहिताः <br />
अतोसंस्कृतज्ञानं बिना तेषां <br />
रसास्वादनं कथं स्यात्<br />
अतः संस्कृतम् सदा सेवनीयं जनैः।<br />
<br />
संस्कृतस्य प्रभावात्सदा सम्पदम्<br />
यत्र कुत्राऽपि नगरे ग्रामे वा <br />
संस्कृतम् बिना जीवनं कथं भो!<br />
जीवनं तु संस्कृतम्, श्वसनं संस्कृतम्<br />
अतः संस्कृतम् सदा सेवनीयं जनैः।<br />
<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF&diff=240681सत्यनारायण पांडेय2017-12-14T10:25:40Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKParichay<br />
|चित्र=Satyanarayan-Pandey-Kavitakosh.jpeg<br />
|नाम=सत्यनारायण पांडेय <br />
|उपनाम=<br />
|जन्म=04 जुलाई 1951<br />
|जन्मस्थान=पांकी, पलामू, झारखंड, भारत <br />
|कृतियाँ=<br />
|विविध=भारत गौरव सम्मान<br />
|जीवनी=[[सत्यनारायण पांडेय / परिचय]]<br />
|अंग्रेज़ीनाम=Satya Narayan Pandey, Satyanarayan Pandey<br />
}}<br />
{{KKCatSanskritRachnakaar}}<br />
{{KKCatJharkhand}}<br />
====संस्कृत रचनाएँ====<br />
* [[संस्कृतम् सदा सेवनीयम् / सत्यनारायण पांडेय]]<br />
* [[कर्ममेव जीवनम् / सत्यनारायण पांडेय]]<br />
* [[वसंतः / सत्यनारायण पांडेय]]<br />
* [[वैशाखी / सत्यनारायण पांडेय]]<br />
* [[नारी तु नारायणी / सत्यनारायण पांडेय]]</div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%AE%E0%A5%8D_%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%8D_/_%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF&diff=240680संस्कृम् सदा सेवनीयम् / सत्यनारायण पांडेय2017-12-14T10:25:20Z<p>Anupama Pathak: Anupama Pathak ने संस्कृम् सदा सेवनीयम् / सत्यनारायण पांडेय पृष्ठ [[संस्कृतम् सदा सेवनीयम् / सत्यनारायण...</p>
<hr />
<div>#अनुप्रेषित [[संस्कृतम् सदा सेवनीयम् / सत्यनारायण पांडेय]]</div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A5%8D_%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%8D_/_%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF&diff=240679संस्कृतम् सदा सेवनीयम् / सत्यनारायण पांडेय2017-12-14T10:25:10Z<p>Anupama Pathak: Anupama Pathak ने संस्कृम् सदा सेवनीयम् / सत्यनारायण पांडेय पृष्ठ [[संस्कृतम् सदा सेवनीयम् / सत्यनारायण...</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=सत्यनारायण पांडेय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatSanskritRachna}}<br />
<poem><br />
संस्कृम् सर्वदा सेवनीयं जनैः<br />
संस्कृते सन्निहितास्माकं संस्कतिः<br />
संस्कृम् बिना संस्कृर्नैव नः स्यात्<br />
अतः संस्कृम् रक्षणीयं सदा।<br />
<br />
वेदादि आदिमग्रन्थादिकम्<br />
उपनिषद् पुराणानि <br />
रामायण महाभारतादिकम्<br />
नीतिनिर्धारकमनुस्मृत्यादिकम्<br />
सर्वे संस्कृतैव सम्पादितम्<br />
षोडश संस्कारादिकृत्याः<br />
संस्कृतैव सम्पादितम्<br />
अतः संस्कृम् सदा सेवनीयं जनैः।<br />
<br />
कालिदास्य भारवेःमाघस्य वा<br />
काव्यानिसंस्कृते गुम्फिता<br />
संस्कृतज्ञानं बिना तेषां <br />
रसास्वादनं कथं स्यात्<br />
अतः संस्कृम् सदा सेवनीयं जनैः।<br />
<br />
संस्कतस्य प्रभावात्सदा सम्पदम्<br />
यत्र कुत्राऽपि नगरे ग्रामे <br />
वा संस्कृम् बिना जीवनं कथं भो<br />
जीवनो संस्कृम् श्वसनं संस्कृम्<br />
अतः संस्कृम् सदा सेवनीयं जनैः।<br />
<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%83%E0%A4%96_/_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%AE_%E0%A4%87%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6&diff=240646दुःख / विल्हेम इकेलुन्द2017-12-13T04:24:17Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार= विल्हेम इकेलुन्द<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
<Poem><br />
किनारों पर उजाड़ पहाड़ियाँ <br />
उदास रात को कर देती हैं और काला,<br />
धूसर और घटाटोप साँझ से<br />
निकलता है एक कालीन चमकीले रंगों वाला.<br />
<br />
एक रूदन, एक मौन सिसकी,<br />
जैसे स्पंदन हो समंदर में -<br />
बहुत थके हुए और लड़खड़ाते हुए है गिरता<br />
वह चुपचाप अपनी कब्र में.<br />
<br />
'''(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%AE_%E0%A4%87%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6&diff=240645मैं किसी के लिए नहीं लिखता / विल्हेम इकेलुन्द2017-12-13T04:23:29Z<p>Anupama Pathak: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विल्हेम इकेलुन्द |संग्रह= }} <Poem> मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार= विल्हेम इकेलुन्द<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
<Poem><br />
मैं किसी के लिए नहीं लिखता --<br />
हवाएँ जो यहाँ-वहाँ भटकती हैं उनके लिए,<br />
बारिश जो रोती है उसके लिए,<br />
मेरे गीत आँधी की तरह हैं,<br />
जो बड़बड़ाते हुए चल देते हैं<br />
शरत्काल के अँधेरे में<br />
और बात करते हैं धरा से<br />
रात से और बारिश से.<br />
<br />
'''(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)'''<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%AE_%E0%A4%87%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6&diff=240644विल्हेम इकेलुन्द2017-12-13T04:22:17Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKParichay<br />
|चित्र=Vilhelm-Ekelund-Kavitakosh.JPG<br />
|नाम= विल्हेम इकेलुन्द<br />
|उपनाम= <br />
|जन्म= 14 अक्तूबर 1880 <br />
|मृत्यु= 03 सितम्बर 1949<br />
|जन्मस्थान=स्कॉने, स्वीडन <br />
|कृतियाँ= Melodier i skymning (१९०२), Havets stjärna (१९०६), Antikt ideal (१९०९), Böcker och vandringar (१९१०), På havsstranden (१९२२)<br />
|विविध= The Nine Society's Grand पुरस्कार से पुरस्कृत, Bellman पुरस्कार से पुरस्कृत, [[नोबेल पुरस्कार|साहित्य के नोबेल पुरस्कार]] के लिए नामांकित <br />
|जीवनी=[[विल्हेम इकेलुन्द / परिचय]]<br />
}}<br />
* [[दुःख / विल्हेम इकेलुन्द]]<br />
* [[हे कविता! / विल्हेम इकेलुन्द]]<br />
* [[मैं किसी के लिए नहीं लिखता / विल्हेम इकेलुन्द]]</div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240606संवाद की कविता / अर्चना कुमारी2017-12-11T08:46:01Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
आत्मचिंतन<br />
लेकर आता है झंझावात<br />
अपराधबोध,अफसोस<br />
घृणा, क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या<br />
करुणा, क्षमा<br />
निःशब्द अन्तस दर्पण बन जाता है<br />
स्पष्ट दिखाता है <br />
हूबहू प्रतिबिम्ब अपना<br />
<br />
मैं चुप हूँ<br />
अनुत्तरित प्रश्नों के रेतीले ढेर से<br />
ढूँढ लाती हूँ उत्तर कोई<br />
देख पाती हूँ<br />
भीतर जमा मवाद<br />
महसूसती हूँ अवसाद<br />
युद्धरत मनसा से<br />
कर्मणा सामान्य रहना<br />
और वाचन में मधुर होना<br />
नित एक अध्याय की तरह <br />
पढा जाना स्वयं को स्वयं ही<br />
पाठोपरान्त सीख देता है<br />
कि हम देख पाते हैं कमियाँ भी अपनी<br />
<br />
प्रायः अपनी चुप्पियों में<br />
तौलते हुए स्वयं को<br />
तुम्हारी खामोशियाँ चमकती हैं<br />
प्यास की धूप में नदी की तरह<br />
कदम-दर-कदम बढते हुए पानी की तरफ<br />
भयभीत हो जाती हूँ<br />
मौन के पर्यायवाची के हाहाधार से<br />
झटकती हूँ सर अपना<br />
और सौंपती हूँ खुद को तुम्हें<br />
कि जानती हूँ चुप होना नहीं होता कभी-कभी बेबसी/घृणा/नफरत का द्योतक<br />
स्वीकार्यता में नहीं होता कभी-कभी<br />
कोई भी शोर<br />
<br />
गणितीय प्रमेय नहीं होते प्रेम में<br />
नहीं होता कोई समीकरण<br />
नजदीकियों के दर पर<br />
आहट देती दूरियों की दस्तक में<br />
अनकहे/अनसुने के भावानुवाद से<br />
तुम्हारे अंक का सुख पाकर<br />
हो जाती हूँ बीर-बहूटी वधू<br />
<br />
सुनो मीत !<br />
स्वतः संवाद <br />
स्वगत हो जाए यदि<br />
तो जटिल होगी संधियाँ प्रेम की<br />
शीत युद्ध से पूर्व ही ढूँढ ली मैंने<br />
कविता संवादों की<br />
तुम मुस्कुराकर थपथपाना पीठ<br />
आश्वस्ति की ऊष्ण हथेली से! </poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%97_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240605दाग / अर्चना कुमारी2017-12-11T08:41:18Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
चांद पर उभरते दाग पर<br />
सुने होंगे बहुत से वैज्ञानिक विश्लेषण और शोध भी<br />
बहुत सी उपमाएं साहित्यकारों की<br />
लेकिन कहा एक लड़की ने<br />
वो गढ्ढे बने हैं मेरे आंसूओं से<br />
वहां जमा हुआ है काला नमकीन पानी<br />
ये जो अमावस है धरती के हिस्से की<br />
घना जंगल है ख़ामोशी का<br />
उन चुप्पा लड़कियों की<br />
जो रात भर बतियाती हैं चांद से<br />
ये जो चांदनी बरसती है धरा के आंगन<br />
जल जाते हैं उगे हुए जंगल<br />
जब गूंजता है समवेत क्रंदन चाँद के कानों में<br />
एक ठहरी हुई नदी का<br />
निकल आता है अकबका कर बाहर चांद<br />
डूब जाती है धरती फट जाता है रंग<br />
शोकमग्न चांद का<br />
नीली चांदनी का उजला होना<br />
नहीं समझेंगे लोग<br />
नहीं समझेंगे डूब जाने का मतलब<br />
कि जल जाने का मतलब<br />
सिर्फ जिस्म के दाग नहीं होते।<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%A4_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240604आदत / अर्चना कुमारी2017-12-11T08:39:31Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
प्रेम हो जाता है<br />
बंद आंखों से,<br />
मन देखे जाते हैं<br />
चेहरे नहीं<br />
<br />
फिर पलट जाता मौसम<br />
जैसे हर करवट में<br />
अलग होती है नींद की मुद्रा<br />
<br />
पाने से भरता हुआ घट<br />
खोने से रीतता रहता है<br />
<br />
करीब आकर लौटते हुए हाथ<br />
पिघलती गर्माहटों के नाम<br />
अजनबियत लिख जाते हैं<br />
मुस्कुरातें हैं<br />
<br />
ये साजिश नहीं होती<br />
होता है फासला खुद से<br />
जिसे चौड़ा करती हैं दिन रात<br />
चुप्पियों के फावड़े<br />
<br />
तकिए के नीचे नहीं रहा करती<br />
तस्वीर कोई<br />
एक संग होता है आगोश में<br />
जैसे गर्मी और पसीना<br />
बारिश उमस बूंदें<br />
ठंढक स्वेटर दस्ताने<br />
<br />
मुलाकातों से पुख्ता हुई जमीन<br />
घूमने लगती है<br />
चेहरा तलाशने पर नहीं खुलता<br />
तहों का ताला जंग लगा<br />
<br />
प्रेम हो जाता है<br />
होता रहता है<br />
क्योंकि दिल को आदत है<br />
नम होकर खिलखिलाने की।<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B0_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240602इन्तजार / अर्चना कुमारी2017-12-11T07:54:00Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
आसमान की तरफ नजर उठाओ<br />
तो जेहन खन खन बजता है<br />
घनघनाती है बेसुरी सांसे<br />
लफ्ज नहीं बुदबुदाते<br />
मोड़कर पलकें<br />
जमीं की ओर<br />
लौट आती हैं आंखें<br />
<br />
इंतजार अंतहीन हुआ करता है।<br />
<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%85%E0%A4%96%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_/_%E0%A4%B6%E0%A4%B6%E0%A4%BF_%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0&diff=240601अखबारों में / शशि पुरवार2017-12-11T07:53:18Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=शशि पुरवार<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatNavgeet}}<br />
{{KKCatMadhyaPradesh}}<br />
<poem><br />
हस्ताक्षर की कही कहानी<br />
चुपके से गलियारों ने<br />
मिर्च मसाला, बनती खबरे<br />
छपी सुबह अखबारों में।<br />
<br />
राजमहल में बसी रौशनी <br />
भारी भरकम खर्चा है<br />
महँगाई ने बाँह मरोड़ी <br />
झोपड़ियों की चर्चा है<br />
<br />
रक्षक भक्षक बन बैठे है<br />
खुले आम दरबारों में। <br />
<br />
अपनेपन की नदियाँ सूखी,<br />
सूखा खून शिराओं में <br />
रूखे रूखे आखर झरते <br />
कंकर फँसा निगाहों में<br />
बनावटी है मीठी वाणी<br />
उदासीन व्यवहारों में। <br />
<br />
किस पतंग की डोर कटी है<br />
किसने पेंच लडाये है<br />
दांव पेंच के बनते जाले<br />
सभ्यता पर घिर आए है<br />
<br />
आँखे गड़ी हुई खिड़की पर<br />
होठ नये आकारों में।<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%97%E0%A4%A6_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%9B%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B5_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240600बरगद की छांव / अर्चना कुमारी2017-12-11T07:52:52Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
एक दिन नष्ट होने का तय है<br />
तय है कि बीत जाना है<br />
<br />
सर पर घुंघराले लटों की तरह<br />
उलझते रहेंगे अहं के तंतु <br />
<br />
थामी गयी हथेलियों में<br />
चुभते रहेंगे नाखून<br />
<br />
गले मिलते ही<br />
उभर आएंगे दंतक्षत<br />
<br />
आंखों में चुभेंगी<br />
उठी हुई ऊंगलियां<br />
<br />
पीठ पर भंवर होगा<br />
मन में बवंडर<br />
<br />
नहीं झुकने का अर्थ<br />
ताड़ का वृक्ष नहीं होता<br />
<br />
झुकने की पात्रता <br />
धनुष जानता है<br />
<br />
भीड़ के कोलाहल में<br />
हृदय मनुज पहचानता है<br />
<br />
प्रेम करना सीखना होगा<br />
दिलों पर राज करने से पहले<br />
<br />
बरगदों की छांव में<br />
पलते हैं कितने संसार...।<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%86_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240599दुआ / अर्चना कुमारी2017-12-11T07:52:07Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
जब हूक उठती है<br />
तब मलाल उगता है<br />
कि खंजरों की नोंक पर<br />
जिस जिस्म को रखा गया<br />
वही रुह की अलमस्तियों में<br />
आजाद तन्हा फिरता रहा<br />
खेल-खेल में चोट जो लगीं<br />
तो उम्र सारी लग गयी<br />
रेशा-रेशा सांस में चुभन हुई<br />
कि उम्र सारी चुभ गयी<br />
राह एक चलती रही<br />
उम्मीद सी बुनती रही<br />
होंठों पर मुस्कान बन<br />
उम्र भर खिलती रही<br />
उठे जब हाथ<br />
दिल खुदा-खुदा हुआ<br />
नजर झुकी सजदे में<br />
शद भर दुआ-दुआ....</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A4%B0_%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240598कविता का मर जाना / अर्चना कुमारी2017-12-11T07:50:56Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
कविता<br />
वही शब्द <br />
भाव पृथक<br />
<br />
भटक कर लौट आती हैं<br />
नहीं खटखटाती अर्गला<br />
उस पहचानी चौखट का भी<br />
जहां कभी नववधू सा स्वागत हुआ<br />
और फिर निकाला भी गया<br />
मृत शरीर की तरह<br />
मानो रह गयीं कुछ देर और<br />
तो दुर्गन्ध फैलाएंगी...<br />
<br />
इन कविताओं की नियति है<br />
अतृप्त ही भटकते रहना<br />
या तृप्ति लिख नहीं पाई<br />
अंजाने में ही ढोती रही<br />
कुछ गर्भस्थ कल्पनाएं<br />
कुछ नवजात सपने<br />
एक जीवन में पलना<br />
और एक पालना<br />
समय के क्रूर पंजों में<br />
<br />
असमय ही वार्धक्य को प्राप्त हुई कविताएं<br />
और अवश ताकती रहीं छीनी हुई लाठी<br />
गम्भीर अट्टाहास में<br />
करूण क्रंदन की विभीषिका<br />
<br />
पर अक्षम थी कविता...<br />
शब्दों की उतान और वितान में<br />
गुञ्ज रहा था मन<br />
अमृत घट को उल्टा रखकर<br />
जबरदस्ती विष लिखना<br />
इतना भी सरल नहीं होता<br />
<br />
कविताओं का उद्गम प्रेम<br />
सुना है शाश्वत हुआ करता है<br />
और अक्षय भी<br />
फिर यों प्राप्त हुआ क्षय को<br />
या चन्द्र की पूर्णता के साथ<br />
डूब रहा तिमिर में<br />
या निकलेगा पुन: एक पक्ष बाद<br />
<br />
अपनी स्निग्धता के आलिंगन में लिप्त करने भाव<br />
आत्मा विदग्ध है<br />
अजन्मी संतानों का शव लिए गोद में<br />
विस्मृति की पगडंडियों पर<br />
ढूंढ रही श्मशान...<br />
हर रास्ता ख़त्म हो जाता वहीं<br />
रो भी नहीं सकती दुहिताओं की मृत्यु पर<br />
न बहा सकती उन्हें किसी नदी में<br />
न दाह सकती आग में<br />
न दफना सकती मिट्टी तले<br />
इनके हिस्से मुक्ति का कोई अंश नहीं आया<br />
<br />
अकाल मृत्यु को प्राप्त नौनिहालों<br />
तुम्हारा मर जाना<br />
नियति नहीं थी<br />
करुंगी संचार तुममें प्राण का<br />
अपने कण कण अश्रु और बूंद बुंद शोणित से<br />
लिखकर प्रेम कविताएं<br />
तुम लौट आना....खिलखिलाना<br />
थामकर चलना पिता की ऊंगलियां<br />
छोड़ देना मेरे हृदय में पदचाप अपने<br />
सृष्टि में सुर घोलना घुंघरुओं से...<br />
तुम्हारा जाना असंयत था....<br />
आना नियत और संयत होगा...<br />
मैं प्रतीक्षा में हूं...।<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%AF_%E0%A4%95%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240597सन्देश अभय का / अर्चना कुमारी2017-12-11T07:49:12Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
जब भी कोई<br />
पीठ कर देता है चेहरे के सामने<br />
डर लगता है<br />
करवट बदल कर सो जाना किसी का<br />
नींद तब चबाती है निर्भयता<br />
औपचारिकताओं की चहलकदमी<br />
फासले कम नहीं करती<br />
दूरियां बड़बड़ाती हैं<br />
नींद में चलते हुए<br />
सब कुछ पहले जैसा हो जाना<br />
गांठों के बाद<br />
कितनी तहों का कारीगर<br />
पीछे पलट कर देखने पर<br />
परछाईंयां के सांप<br />
न पांव धरने देतीं, न मुक्त ही करतीं<br />
पलक की पिटारी खुलते ही<br />
थोड़ी ताजा हवा आती है<br />
आशाओं के देश से<br />
संदेश लेकर अभय का।<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%AA%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80&diff=240596पहाड़ का पठार होना / अर्चना कुमारी2017-12-11T07:48:50Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कुमारी<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
रात के पहाड़ को काटकर<br />
सपने पठार होंगे<br />
उपजेंगी सीढ़ीनुमा खेतों में<br />
दर्द की फसलें<br />
चरवाहा गीत गाएगा<br />
गड़ेरिया हांक ले जाएगा<br />
अपनी भेड़ें<br />
खूटे से बंधी गाय की आंखों में<br />
हरियाली तैरकर बहती होगी<br />
रंभाते बछड़ों के सुर में<br />
अवसान से पूर्व का आलाप होगा<br />
हाथ की उभरी लकीरों का दाग<br />
घिसकर मिटाएगी<br />
ज़िंदगी समय के पत्थर पर<br />
दीवारों से सर टकराते लोग<br />
नहीं ठहरेंगे किसी मोड़ पर<br />
किसी इंतजार में<br />
औपचारिकताओं की धूंध ने<br />
काटी संवेदना की सांस<br />
कि मैय्यत में जाते हुए भी<br />
सुविधा नहीं भूलता आदमी<br />
पांव की पीठ पर<br />
उकेरना नींद<br />
वहम को थपकियां देना<br />
सुनाना लोरियां मन के बहरेपन को<br />
कि फिर जागती देह का जागना<br />
पठार से पहाड़ होकर...।<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%B8%E0%A4%BE_%E0%A4%A6%E0%A4%B2_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%A7%E0%A5%87_%E0%A4%B2%E0%A5%8C%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%87_%E0%A4%B5%E0%A5%87_/_%E0%A4%89%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%BE&diff=240595टिड्डियों सा दल बाँधे लौटेंगे वे / उज्जवला ज्योति तिग्गा2017-12-11T06:33:49Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=उज्जवला ज्योति तिग्गा<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
ज़िन्दगी भर रेंग घिसट कर<br />
कीड़े-मकोड़ों-सा जीवन जिया<br />
हर किसी के पैरों के तले<br />
रौंदे जाने के बावजूद<br />
हर बार तेज़ आँधियों में<br />
सिर उठाने की हिमाकत की<br />
और समय के तेज़ प्रवाह के ख़िलाफ़<br />
स्थिर खड़े रहने की मूर्खता (जुर्रत) की<br />
और जीवन की टेढ़ी मेढ़ी<br />
उबड़ खाबड़ पगडंडियो पर<br />
रखते रहे / राह में पड़े<br />
कंकड़ और काँटो से घायल<br />
अपने थके-हारे / लहुलुहान क़दम<br />
और सतह पर बने रहने के संघर्ष में<br />
बुरी तरह से घायल / क्षत-विक्षत<br />
आत्मा के घाव रूपी हलाहल को<br />
अमृ्त और आशीष मान<br />
जीवन भर चुपचाप पिया<br />
तो क्या व्यर्थ जीवन जिया<br />
...<br />
अन्धी गलियों के बंद मोड़ों पर<br />
क्या व्यर्थ ही अपना सिर फ़ोड़ा<br />
कि दीवारों में छुपे बन्द दरवाज़े<br />
खुल जाएँ हरेक के लिए<br />
न कि हो चन्द लोगों का कब्जा<br />
उन चोर-दरवाज़ों के मकड़जाल पर<br />
जिनका सर्वाधिकार सर्वथा सुरक्षित<br />
उनकी आगामी अनगिन पीढ़ियों के लिए<br />
और सेंधमारी में सिद्धहस्त<br />
कायर चापलूसों और चाटुकारों का<br />
लालची हुजूम<br />
चोर-दरवाज़ों की फाँको और छेदों से<br />
झलकते जगमग संसार की चमक से चौंधियाकर<br />
अपने आकाओं के नक्शे-क़दमों पर चलते हुए<br />
दूसरो को रौंदकर और कुचलते हुए<br />
आगे बढ़ने में जिन लोगों को<br />
कभी भी न रहा कोई गुरेज<br />
और नहीं कोई भी परहेज<br />
और अपने तथाकथित<br />
आदर्श और संस्कारों के<br />
ढकोसलों को<br />
अपने हाथों की तलवार और<br />
तीरों की नोक बना<br />
छलनी करता रहा<br />
आस-पास मंडराती भीड़ की<br />
देह-प्राण आत्मा तक को<br />
जिन्होंने भी की हिमाकत<br />
चुनौती बनने की<br />
उनके विश्वविजय के<br />
संकल्प की धज्जियाँ उड़ाने की<br />
...<br />
बढ़ता रहा बेख़ौफ़ और बेरोकटोक<br />
उनका हुजूम<br />
विलासितापूर्ण समृद्धि के<br />
जगमग राजपथ पर<br />
गर्व से गर्दन अकड़ाए<br />
अपनी तथाकथित<br />
बमुश्किल मिली उपलब्धियों पर<br />
किसी गैस भरे गुब्बारे सा फ़ूला हुआ<br />
हवा के झौंको के साथ साथ<br />
जहाँ-तहाँ उड़ते लहराते<br />
...<br />
टिड्डियों-सा दल बान्धे लौटेंगे वे<br />
और तहस-नहस कर देंगे<br />
समृद्धि के राजमार्ग की<br />
हर चमक-दमक को<br />
दीमक बन खोखला कर देंगे<br />
चोर-दरवाज़ों के मकड़जाल के<br />
बदौलत बनी हर इमारत की नींव<br />
...<br />
कीड़े मकोड़ों-सा<br />
अब नहीं रौंदे जाएंगे वे<br />
किसी भी ऐरे गैरों के बूट तले<br />
रेंगना घिसटना छोड़<br />
अब वे उड़ेंगे मुक्त आकाशों में<br />
और दौड़ेंगे वे हिरण सदृश<br />
जीवन की जंगली पगडंडियो पर<br />
...<br />
चोर-दरवाज़ों के मकड़जाल को<br />
हर तरफ़ से काट-चीर कर<br />
आंखे नोच लेंगे वे<br />
बेनकाब कर उन पाखण्डी रहनुमाओं की<br />
जिन्हें बलि देते रहे वे<br />
अपने बहुमूल्य जीवन को कौड़ियों-सा<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9C%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B2_%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%AC%E0%A4%A8_%E0%A4%B2%E0%A5%8C%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A4%BE_/_%E0%A4%89%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%BE&diff=240594जंगल चीता बन लौटेगा / उज्जवला ज्योति तिग्गा2017-12-11T06:33:23Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=उज्जवला ज्योति तिग्गा<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
जंगल आख़िर कब तक ख़ामोश रहेगा<br />
कब तक अपनी पीड़ा के आग में<br />
झुलसते हुए भी<br />
अपने बेबस आँसुओं से<br />
हरियाली का स्वप्न सींचेगा<br />
और अपने अंतस में बसे हुए<br />
नन्हे से स्वर्ग में मगन रहेगा<br />
....<br />
पर जंगल के आँसू इस बार<br />
व्यर्थ न बहेंगे<br />
जंगल का दर्द अब<br />
आग का दरिया बन फ़ूटेगा<br />
और चैन की नींद सोने वालों पर<br />
कहर बन टूटेगा<br />
उसके आँसुओं की बाढ़<br />
खदकती लावा बन जाएगी<br />
और जहाँ लहराती थी हरियाली<br />
वहाँ बयावान बंजर नज़र आएँगे<br />
....<br />
जंगल जो कि<br />
एक ख़ूबसूरत ख़्वाब था हरियाली का<br />
एक दिन किसी डरावने दु:स्वपन-सा<br />
रूप धरे लौटेगा<br />
बरसों मिमियाता घिघियाता रहा है जंगल<br />
एक दिन चीता बन लौटेगा<br />
....<br />
और बरसों के विलाप के बाद<br />
गूँजेगी जंगल में फ़िर से<br />
कोई नई मधुर मीठी तान<br />
जो खींच लाएगी फ़िर से<br />
जंगल के बाशिंदो को उस स्वर्ग से पनाहगाह में<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%A6%E0%A4%B2_%E0%A4%85%E0%A4%AC_%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%87_%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82_/_%E0%A4%89%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%BE&diff=240593शिकारी दल अब आते हैं / उज्जवला ज्योति तिग्गा2017-12-11T06:33:00Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=उज्जवला ज्योति तिग्गा<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
शिकारी दल अब आते हैं<br />
खरगोशों का रूप धरे<br />
जंगलो में / और<br />
वहाँ रहने वाले<br />
शेर भालू और हाथी को<br />
अपनी सभाओं में बुलवाकर<br />
उन्हें पटाकर<br />
पट्टी पढ़ाकर<br />
समझाया / फ़ुसलाया<br />
कि / आख़िर औरों की तरह<br />
तरक्की उनका भी तो<br />
जन्मसिद्ध अधिकार है / कि<br />
क्या वे किसी से कम हैं / कि<br />
दुनिया में भले न हो<br />
किसी को भी उनका ख़याल / पर<br />
वे तो सदा से है रहनुमा<br />
उन्हीं के शुभचिंतक और सलाहकार<br />
लोग तो जलते हैं<br />
कुछ भी कहेंगे ही / पर<br />
इस सब से डरकर भला<br />
वे क्या अपना काम तक छोड़ देंगे<br />
...<br />
ये तो सेवा की सच्ची लगन ही<br />
खींच लाई है उन्हें<br />
इन दुर्गम बीहड़ जंगलों में<br />
वर्ना कमी थी उन्हें<br />
क्या काम धन्धों की<br />
...<br />
विकास के नए माडल्स के रूप में<br />
दिखाते हैं सब्ज़बाग<br />
कि कैसे पुराने जर्जर जंगल<br />
का भी हो सकता है कायाकल्प<br />
कि एक कोने में पड़े<br />
सुनसान उपेक्षित जंगल भी<br />
बन सकते है<br />
विश्वस्तरीय वन्य उद्यान<br />
जहाँ पर होगी<br />
विश्वस्तरीय सुविधाओं की टीम-टाम<br />
और रहेगी विदेशी पर्यटकों की रेल पेल<br />
और कि / कैसे घर बैठे खाएगी<br />
शेर हाथी और भालू की<br />
अनगिन पुश्तें<br />
...<br />
पर शर्त बस इतनी / कि<br />
छोड़ देना होगा उन्हें<br />
जंगल में राज करने का मोह<br />
और ढूँढ लेना होगा उन्हें<br />
कोई नया ठौर या ठिकाना / कि<br />
नहीं हैं उनके पास<br />
नए और उन्न्त कौशल का भंडार<br />
जिनके बिना नहीं चल पाता/ आजकल<br />
कोई भी कार्य-व्यापार / और<br />
कम्पनी के पालिसी के तहत<br />
बन्धे है उनके हाथ भी<br />
मजबूर हैं वे भी / कि<br />
भला कैसे रख लें वे / उन<br />
उजड्ड गँवार और जाहिलों को<br />
उन जगमग वन्य उद्यानों में<br />
आखिर उन्हें भी तो<br />
देना पड़ता है जवाब<br />
अपने आकाओं को<br />
...<br />
पर फ़िर भी<br />
अगर बहुत जिद करेंगे तो<br />
चौकीदारों / चपरासियों<br />
और मज़दूरों की नौकरियों पर<br />
बहाल किया जा सकता है उन्हें<br />
कई विशेष रियायतों<br />
और छूट देने के बाद<br />
पर अयोग्य साबित होने पर<br />
छोड़ना होगा<br />
अपने सारे विशेषाधिकारों का दावा !!!<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%89%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87_%E0%A4%B8%E0%A5%87_/_%E0%A4%89%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%BE&diff=240592उजाले से / उज्जवला ज्योति तिग्गा2017-12-11T06:32:33Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=उज्जवला ज्योति तिग्गा<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
अक्सर सुना है लोगो को शिकायत करते<br />
उजाले से भला क्या मिला हमें आज तक<br />
उजाले ने तो आकर हमारे सामने<br />
कर दी कितनी ही परेशानियाँ खड़ी<br />
भला किसे जरूरत है उजाले की अब<br />
जब अन्धेरों से ही काम चल जाता है अब<br />
और फिर अब तो<br />
आदत-सी हो गई है अन्धेरों की<br />
सीख लिया है अब तो उजाले के बिन जीना<br />
...<br />
उजाला तो महज भटकाता है<br />
जाने किन उलजलूल सवालों में उलझाता है<br />
अब भला कौन उसके बहकावे में आए<br />
अपनी हरी-भरी ज़िन्दगियों में<br />
बबूल और ऊँटकटारे बोए<br />
और लहूलुहान पैरों से<br />
बाक़ियों की तरह ज़िन्दगी की दौड़ दौड़े<br />
...<br />
जब से अन्धेरों में सिमट आई है मंज़िलें<br />
उनके भी पहुँच के भीतर<br />
जब औरों की तरह<br />
उठाकर फ़ायदा अन्धेरों का<br />
उन्होंने भी खोज ली है<br />
काफ़ी मशक्कत के बाद<br />
सुरंगो भरी वो चोर गली<br />
और खोद ली है अपने घरों तक<br />
कई नई सुरंगो का मकड़जाल<br />
चोरी छिपे उस चोर गली तक<br />
जिसके मुहाने पर है मौजूद<br />
बेलगाम समृद्धि का अकूत खजाना<br />
जिसपर था कब्ज़ा अब तक<br />
चन्द चुने हुए लोगो और घरानो का<br />
अब वे भी तो हो गए हैं हिस्सेदार<br />
उन चमकीले चटकीले सपनो का<br />
और हाथ बढाकर छू क़ैद कर सकते हैं उन्हें<br />
अपनी रूखी खुरदुरी हथेलियों में<br />
अपने ही बूते अपनी बुद्धि बल कौशल से<br />
...<br />
अन्धेरों की चाहत में<br />
छलबल और झूठ प्रपंच से<br />
हाथ मिलाकर<br />
देशनिकाला दे दिया जबसे<br />
गदहे पर बिठलाकर<br />
सच्चाई ईमानदारी और मेलप्रेम जैसे<br />
उज्जड गँवारों को जिन्हें नहीं है तमीज<br />
बदलते समयो के रंगरूप में / खुद-ब-खुद<br />
ढल जाने की<br />
कितना चैन है हर तरफ़<br />
कहीं कोई अप्रिय असहज तान की गूँज नहीं<br />
जो कर दे रंग में भंग मस्ती भरी महफ़िल का<br />
...<br />
पर उजाले ने दबे पाँव आकर<br />
कर दिया है सब कुछ चौपट<br />
और लेकर आया है वो साथ अपने<br />
कीड़े-मकोड़े सा रेंगते<br />
अनगिनत दावेदारों का<br />
एक अंतहीन हुजूम<br />
जिन्होंने ठानी है<br />
बरसो की भूख मिटाने की<br />
सब कुछ को हजम कर जाने की<br />
किसी छापेमार दस्ते-सा<br />
तहस नहस करने की<br />
चोरी छिपे सेंधमारी के<br />
उन तमाम बेहतरीन और नायाब मंसूबो का<br />
ताकि हो पर्दाफ़ाश अन्धेरों की करतूतों का<br />
और साकार हो उजाले का सपना हर दिल हर घर में<br />
</poem></div>Anupama Pathakhttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8-_%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%AF_%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BE...._/_%E0%A4%89%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A4%BE&diff=240591कन्फ़ेशन- मिय कल्पा.... / उज्जवला ज्योति तिग्गा2017-12-11T06:31:56Z<p>Anupama Pathak: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=उज्जवला ज्योति तिग्गा<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
तो फ़िर बचता क्या है विकल्प<br />
सिवाय कहने के / मान लेने के / कि<br />
जी मंज़ूर है हमें / आपके सब आरोप<br />
शिरोधार्य है आपकी दी हर सज़ा<br />
जहाँ बांदी हो न्याय / सत्ता के दंड-विधान की<br />
जिसमें नित चढ़ती हो निर्दोषों की बलि<br />
दुष्ट / दोषी हो जाते हों बेदाग बरी<br />
गवाह / दलील / अपील / सभी तो बेमानी है यहाँ<br />
कि जिसमें तय हो पहले से ही फ़ैसले<br />
जिनके तहत / यदि जब-तब<br />
ज़िन्दगी के भी हाशिए से अगर / बेदख़ल कर<br />
धकिया जाते हैं लोग / और<br />
मनाही हो जिन्हें / सपने तक देखने<br />
मनुष्य बने रहने की<br />
नैराश्य और हताशाओं की<br />
काल-कोठरी में / जुर्म साबित होने से पहले ही<br />
काला पानी की सज़ा / आजीवन भुगतने को अभिशप्त<br />
</poem></div>Anupama Pathak