बाबू गधाराम‌ / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

एक गधे को मिली नौकरी,
दफ्तर के बाबू की।
सबसे अधिक कमाऊ थी जो,
वह कुर्सी काबू की।

काम कराने के बद्ले वह,
जमकर रिश्वत लेता।
जितना खाता उसका आधा,
साहब को वह देता।

साहब भालूराम मजे से,
सभी काम कर देता।
बाबू गधाराम था उसका,
सबसे बड़ा चहेता।

मौज मजे मेम भालू दादा,
सुरा विदेशी पीते,
और बुलाकर गधेराम को,
देशी पकड़ा देते।

देशी पीकर गधेराम का,
गला हो गया भोंपू।
इस कारण अब करते रहते,
दिन भर चेंपू चेंपू।

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