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आँखें खोलो / विजय किशोर मानव से जुड़े हुए पृष्ठ
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देखें (पिछले 50 | अगले 50) (20 | 50 | 100 | 250 | 500)- हमको ख़ामोश बनाए रखिए / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- थक के चूर हो गए आईने / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- लाख हैं पाँव फंसे जालों में / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- उजड़ा शहर हमारा ऐसे / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- थोड़ा जीना हुआ, थोड़ा मरना हुआ / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- कब से ये शोर है शहर भर में / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- मुँह उनके ख़ून से सने रहना / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- अकड़ गई गरदन सर्दी से, कहने को है ऊँचा सर / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- आ के वो सर झुका गए यूँ ही / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- शहर जले चीख़े आबादी / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- नदिया, पोखर, ताल हाल के दंगे में / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- हर तमाशा अजीब ही है / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- दोपहर है बहुत घाम है / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- आँख मे ख़्वाबघर है, और कुछ नहीं दिखता / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- आईना फ़र्श पर गिरने को है / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- रोज़ बढ़ती जा रही है भूख राजा की / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)
- किस तरह चीख़ते रहे होंगे / विजय किशोर मानव (← कड़ियाँ)