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उत्तर-कथा / प्रदीप मिश्र

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=प्रदीप मिश्र|संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>'''उत्तर-कथा'''  
माँ का आँचल था
सिर पर आशीर्वाद की तरह
भाई का बन्धुत्व था
बाजुओं में ताकत ताक़त की तरह
बहन का स्नेह था
सभ्य समाज का वह असभ्य नागरिक था
अपनी इस जिल्लत ज़िल्लत भरी जिन्दगी ज़िन्दगी से ऊबकर
उसने आत्महत्या कर ली
उसकी मौत पर जश्न मनाया गया
घर-परिवार-आस-पड़ोस सारे लोग
शामिल थे इस खुशी ख़ुशी में
वह शराब की एक बोतल में सिमट कर बैठा हुआ
जला रहा था उस चूल्हे को
जो बिना भूख के भी जलता था
कपड़ों केा इतन्ेा के इतने बडे़ अम्बार में
उतरने जा रहा था कि
रोज रोज़ नए पहने तो खत्म ख़त्म न हों
नगर के सभ्य समाज की सूचियाँ
संशोधित हो रहीं थीं
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