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ख़ुद हूं तमाशा ख़ुद ही तमाशाईयों में हूं / शीन काफ़ निज़ाम
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11:27, 14 दिसम्बर 2010
मैं ही तो तेरी टूटती अंगडाइयों में हूं
कहता है वो कि तुझ से अलग मैं
कंहा
कहाँ
‘निजाम’
तन्हाइयों में था तिरी रूसवाइयों में हूं
</Poem>
आशिष पुरोहित
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