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"ज़ीस्त उम्मीद के साये में ही पल जाए फिर .../ श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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ज़ीस्त उम्मीद के साए में ही पलती रहती
 
ज़ीस्त उम्मीद के साए में ही पलती रहती
  
ज़ख्म कैसे भी हों भर जाते हैं रफ़्ता रफ़्ता
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एक पल को भी अगर तेरा सहारा मिलता
ज़िंदगी ठोकरें खा- खा के, संभलती रहती
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ज़िंदगी ठोकरें खा के भी संभलती रहती  
  
फ़र्ज़ दुनिया के निभाने में गुज़र जाए दिन
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फ़र्ज़ दुनिया के निभाने में गुज़र जाते दिन
 
और हर रात तेरी याद मचलती रहती
 
और हर रात तेरी याद मचलती रहती
  
पाँव फैलाए अँधेरा है हर इक कोने में
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पाँव फैलाए अँधेरा है घरों में, फिर भी
ज्योति हालाँकि हर इक बाम पे जलती रहती
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शम्म: हालाँकि हर इक बाम पे जलती रहती
  
 
शांत दिखता है समुन्दर भी लिए गहराई
 
शांत दिखता है समुन्दर भी लिए गहराई
जब के नदिया की लहर खूब उछलती रहती
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जब कि नदिया की लहर खूब उछलती रहती
  
 
तू अगर होती खिलौना तो बहुत बेहतर था
 
तू अगर होती खिलौना तो बहुत बेहतर था

17:00, 14 दिसम्बर 2010 का अवतरण

काश बदली से कभी धूप निकलती रहती
ज़ीस्त उम्मीद के साए में ही पलती रहती

एक पल को भी अगर तेरा सहारा मिलता
ज़िंदगी ठोकरें खा के भी संभलती रहती

फ़र्ज़ दुनिया के निभाने में गुज़र जाते दिन
और हर रात तेरी याद मचलती रहती

पाँव फैलाए अँधेरा है घरों में, फिर भी
शम्म: हालाँकि हर इक बाम पे जलती रहती

शांत दिखता है समुन्दर भी लिए गहराई
जब कि नदिया की लहर खूब उछलती रहती

तू अगर होती खिलौना तो बहुत बेहतर था
तुझसे “श्रद्धा” ये तबीयत ही बहलती रहती

बाम - छज्जा
ज़ीस्त - ज़िंदगी