Changes

रेल के सपने / पाब्लो नेरूदा

18 bytes added, 21:34, 28 दिसम्बर 2010
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>
बिना रखवाली के स्टेशनों पर
उगती बुझती उदासियों पर ।
गाड़ी में छूट गईं कुछ आत्माएँ,
जैसे चाभियां चाभियाँ थीं बिन तालों की,
सीट के नीचे गिरी हुईं ।
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,118
edits