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वैदिक संध्या / मृदुल कीर्ति

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<poem>
'''ॐ'''
'''निर्वाण षडकम''''''श्री आदि शंकराचार्य द्वारा विरचित'''
<span class="upnishad_mantra">
ओ३म्‌ शन्नो देवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये।
शंयोरभि स्रवन्तु नः॥
यजु. ३६.१२
</span>
 
<span class="mantra_translation">
इस पूर्वोक्त मन्त्र से तीन बार आचमन करें.
</span>
   ॐ शन्नो देवी रभि-----------------------------स्रवन्तु नः.इस पूर्वोक्त मन्त्र से तीन बार आचमन करें.<span class="upnishad_mantra">
मनसा परिक्रमा मन्त्र
ॐ प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषवः .|तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . | योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भेदध्मः॥दध्मः  अथर्ववेद ३/२७/१</span><span class="mantra_translation">
पूर्व दिशा का ईशानं यह अग्नि देव है,
रक्षक है आदित्य, न तुलना, एकमेव है.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हो,
तेरे विधान के न्याय-नियम, सब द्वेष शेष हों.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ दक्षिणा दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षितापितर इषवः | . तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नमइषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु . | योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तंवो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/२
</span>
<span class="mantra_translation">
दिशि दक्षिण का ईशानं, अनुपम इन्द्र देव है,
रक्षक नियम-निबद्ध सहायक एकमेव है.
उस अधिपति को पुनि-पुनि प्रणाम को मन करता है,
वह सकल व्यवस्था सबके ही सुख की करता है.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हों,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ प्रतीची दिग्वरुणोऽधिपतिः पृदाकूरक्षितान्नमिषवः . तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नमइषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तंवो जम्भे दध्मः. अथर्ववेद ३/२७/३</span><span class="mantra_translation">
दिशि पश्चिम के ईशानं, अनुपम वरुण देव हैं,
इह इच्छाओं से करें विमुख, वे एकमेव हैं.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हों,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ उदीची दिक् सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताऽशनिरिषवः .तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भेदध्मः. अथर्ववेद ३/२७/४</span><span class="mantra_translation">
दिशि उत्तर के ईशानं अनुपम सोम देव हैं,
दुरितानि निवारक , शांति प्रदाता एकमेव हैं.
उस अधिपति को पुनि-पुनि प्रणाम को मन करता है,
वह सकल व्यवस्था सबके ही सुख की करता है.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हों,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों द्वेष शेष हों.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षितावीरुध इषवः .तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भेदध्मः. अथर्ववेद ३/२७/५</span><span class="mantra_translation">
दिशि ध्रुव के ईशानं अनुपम य़े विष्णु देव हैं,
दृढ़ता, स्थिरता के दाता, वे एकमेव हैं .
उस अधिपति को पुनि-पुनि प्रणाम को मन करता है,
वह सकल व्यवस्था सबके ही सुख की करता है.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हों,
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.</span><span class="upnishad_mantra">ॐ ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिरधिपतिः श्वित्रो रक्षितावर्षमिषवः .तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्योअस्तु . योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भेदध्मः.
अथर्ववेद ३ /२७/ ६
</span><span class="mantra_translation">ऊर्ध्व दिशा के ईश बृहस्पति, परम देव हैं,सात्विक, सुख अंतस के दाता, एकमेव हैं.
उस अधिपति को पुनि-पुनि प्रणाम को मन करता है,
वह सकल व्यवस्था सबके ही सुख की करता है.
जो जन हमसे या हम जिनसे करते विद्वेष हों.
तेरे विधान के न्याय-नियम हों, द्वेष शेष हों.
</span><span class="upnishad_mantra">उपस्थान मंत्र ______________________ॐ उद्वयन्तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम् . देवंदेवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् .
यजुर्वेद ३५/१४
</span>
<span class="mantra_translation">
अति परे प्रकृति से अन्धकार से दूर अति है,
जो बाद प्रलय के विद्यमान की अनुपम गति है.
है सूर्य शिरोमणि देवों क, वह तेरे कृति है,
तेरे प्रकाश की तेज महत, अति अनुपम गति है.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ उदुत्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः . दृशेदृशे विश्वाय सूर्यम्. यजुर्वेद ३३/३१</span><span class="mantra_translation">इस विश्व में ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी, ज्ञान विवेक haiहै
उनका रचयिता, मूल कारण ब्रह्म केवल एक है.
गई है गरिमा ज्ञानियों ने , सत्य चित आनंद की,सूर्य रचनाकार की, आनंदकंद निकंद की.</span><span class="upnishad_mantra">ॐ चित्रं देवानामुद्गादनीकं चक्षुर्मित्रस्यवरुणस्याग्नेः . आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष~म् सूर्य आत्माजगतस्तस्थुषश्च स्वाहा. यजुर्वेद ७/४२</span><span class="mantra_translation">विश्वानि देवों में तू ही, अतिशय बली महिमा मयी.मित्र, पावक, वरुण में तू एक ओजस्वीमयी."सूर्य" आत्मावत रमा, तू जगत हरदयाकाश में,सर्व व्यापक अणु-अणु, द्यौ में धरनि आकाश में.</span><span class="upnishad_mantra">ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् . पश्येमपश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत~म् शृणुयाम शरदः
शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं
भूयश्च शरदः शतात् .
यजुर्वेद ३६/१४
</span><span class="mantra_translation">हे सर्व दृष्टा, सृष्टि के तू , आदि अंत व् मध्य में.सौ वर्ष या उससे अधिक , रहूँ ब्रह्म के ही प्रबंध में.
बस ब्रह्म को देखें सुनें और ना कभी आधीन हों,
सौ वर्ष बोलें ब्रह्म की महिमा, कभी ना दीन हों.
</span> <span class="upnishad_mantra">
गायत्री मंत्र ________________________
ॐ भूर्भुवः स्वः . तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य
धीमहि . धियो यो नः प्रचोदयात् .
यजुर्वेद, ३६/३, ऋग्वेद, ३/६२/१०</span><span class="mantra_translation">
हे सुख स्वरूपी, तुम जगत उत्पत्ति कर्ता हो महे!
प्राण स्वरूपी, सर्व रक्षक, कष्ट दुःख भंजक अहे!वर करने योग्य तू, सदबुद्धि का दाता तू ही,
सत्मार्ग पर मम बुद्धियों को, ले चलो त्राता तू ही.
</span><span class="upnishad_mantra">
समर्पण ________________________________
हे ईश्वर दयानिधे ! भवत्कृपयानेन जपोपासनादिकर्मणाधर्मार्थकाममोक्षाणां सद्यः सिद्धिर्भवेन्नः॥</span><span class="mantra_translation">हे ईश्वर! दयानिधे सद्यःसिद्धिर भवेनः.
हे दयामय! आपकी यदि ना दया की दृष्टि हो,
कैसे हे! प्रभुवर जगत पर, फिर कृपा की वृष्टि हो.
मोक्ष काम व् अर्थ भी, धर्म भी प्राप्तव्य हैं,
आपकी आराधना से य़े सभी संभाव्य हैं.
</span><span class="upnishad_mantra">
नमस्कार मन्त्र
____________________________________
यजु.
यजुर्वेद १६/ ४१
</span><span class="mantra_translation">सौख्य सिन्धु, दीनबंधु को हमारा नमन हो,
कल्याणकारी, विश्व त्राता को हमारा नमन हो.
शिव शांति के, प्रभु मूल उद्गम , को हमारा नमन हो.
मोक्ष सुख दाता, विधाता को हमारा नमन हो.
</span><span class="upnishad_mantra">
अथ ईश्वर स्तुति प्रार्थनोपासना मंत्रः.
अथ देव यज्ञ प्रार्थना-मंत्र.
 ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव . यद् भद्रंतन्न आ सुव. यजुर्वेद ३०/३</span><span class="mantra_translation">
जगत के उत्पत्ति कर्ता, तुम नियंता नित्य हो.
प्राणियों के प्राण ईश्वर, जग अनृत तुम सत्य हो.
दुर्व्यसन, दुःख, रोग, दुर्गुण, दीनता सब शेष हो,
स्वस्तिमय शुभ मंगलम, तेरे कृपा सविशेष हो.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातःपतिरेक आसीत् . स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मैदेवाय हविषा विधेम.
यजुर्वेद १३/४
</span>
<span class="mantra_translation">
सृष्टि े भी पूर्व सृष्टा, तेज पुंज विराट है,
सूर्य, शशि, भू-लोक द्यु, रच धारता एक राट है.
उस प्रजापति देव से, हम सत्य अनुरक्ति करें,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की, अति प्रेम से भक्ति करें.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषंयस्य देवाः . | यस्य छायाऽमृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवायहविषा विधेम.
यजुर्वेद २५/१३
</span>
<span class="mantra_translation">
प्राण, बल, जीवन प्रदाता, जिसका शासन श्रेय है,
जिसकी छाया अमिय रूपी, मोक्ष दाता प्रेय है.
उस प्रजापति देव से हम सत्य अनुरक्ति करें,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ य प्राणतो निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतोबभूव . य ईशे द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवायहविषा विधेम.
यजुर्वेद ३३/३
</span><span class="mantra_translation">जगत जड़-जंगम रचयिता, सकल प्राणी वर्ग का,नियम निर्धारक व् राजा, सृष्टि और संसर्ग का.
उस प्रजापति देव से हम सत्य अनुरक्ति करें,
शुभ सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृ"धा येन स्वःस्तभितं येन नाकः . यो अन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवायहविषा विधेम.
यजुर्वेद ३२/६
</span>
<span class="mantra_translation">
भूलोक, द्यु, रवि, चन्द्र, ध्रुव, और अन्तरिक्ष बनाए हैं.
जो मुक्ति, सुख दाता, विधाता, रूप बहु बन छाये हैं.
उस प्रजापति देव से हम सत्य अनुरक्ति करें,
सत सुख स्वरूपी ब्रह्म की अति प्रेम से भक्ति करें.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ताबभूव . यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयोरयीणाम् .
ऋग्वेद /१०/१२१/१०
</span>
<span class="mantra_translation">
आप ही स्वामी प्रजाके, दूसरा नहीं अन्य है,
आप सर्वोपरि, कृपा से जड़ व् चेतन धन्य है.
जो हमारी कामनाएं, सिद्ध सब प्रभुवर करें,
अतुल धन ऐश्वर्य का, स्वामी हमें ईश्वर करें.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेदभुवनानि विश्वा . यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीयेधामन्नध्यैरयन्त .
यजुर्वेद ३२/१०
</span>
<span class="mantra_translation">
तू हमारा जन्म दाता, मातु- पितु बन्धु सभी.
मोक्ष दायक पूर्ण प्रभु का, साथ न छूटे कभी.
वह हमारे नाम जन्मों, धाम को है जानता.
व्याप्त है ब्रह्माण्ड अखिलं, ब्रह्म की ही महानता.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानिविद्वान् . युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नमौक्तिंविधेम .
यजुर्वेद ४०/१६
</span><span class="mantra_translation">
त्म-भू, ज्योति स्वरूपी, सुपथ पर ले जाइए,
द्वेष, कटुता, कुटिलता से नाथ हमको बचाइये.
संपदा, ऐश्वर्य, श्री, सत धर्म पथ से पा सकें,
प्रेम भक्ति मय 'नमन' गुण गान तेरा गा सकें.
</span><span class="upnishad_mantra">
अथ स्वस्तिवाचनम.
अग्नि मीडे अग्निमीळे पुरोहितं ---------------------------------------रत्नधातमम.यज्ञस्य देवं ऋत्वीजम् ।होतारं रत्नधातमम् ॥ ऋग्वेद १/१/१</span><span class="mantra_translation">
ज्ञानस्वरूपी आदि धारक, सृष्टि का सृष्टा महे,
इच्छित मनोहर द्रव्य दाता, सृष्टि में एकमेव हे!
रत्नों के धारक, हे प्रकाशक! यज्ञादि के तुम हो प्रभो,
हम वंदना करते उसी की, विश्व का जो है विभो.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ स नः पितेव ---------------------------------------------सूनवेऽग्ने सूपायनो भव ।सचस्वा नः स्वस्तये.  ऋग्वेद १/१/९</span><span class="mantra_translation">
जैसे पिता, हित हेतु सुत के, हर निमिष तत्पर रहे,
वैसे कृपा प्रभु आपकी, हर पल निमिष हम पर रहे.
ज्ञानस्वरूपी हे परम! यही आपसे है प्रार्थना,
कल्यानमय शुभ दृष्टि की, हम कर रहे अभ्यर्थना.
</span><span class="upnishad_mantra">स्वस्ति नो मिमीताम ---------------------------------पृथ्वी मिमीतामश्विना भगः स्वस्ति देव्यदितिरनर्वणः ।स्वस्ति पूषा असुरो दधातु नः स्वस्ति द्यावापृथिवी सुचेतुना.  ऋग्वेद ५/ ५१/११</span><span class="mantra_translation">
उपदेश कर्ता और अध्यापक, सभी मंगलमयी,
यह दिव्य पृथ्वी, अचल पर्वत, द्यु सभी हों सुख मयी.
जीवन प्रदाता मेघ वर्षा, हों सभी स्वस्तिमयी.
सब स्वस्तिमय यदि आपकी शुभ दृष्टि हो करुणामयी.
</span><span class="upnishad_mantra">स्वस्तये वायुमुप ---------------------------------------------ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः ।बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः. ऋग्वेद ५/५१/११</span><span class="mantra_translation">
वेद ज्ञाताओं से प्रभुवर ही सदा सानिध्य हो,
वायु, विद्या, प्रवण जन मम, स्वस्ति में संनिद्ध हों.
चन्द्र से औषधि, रसों और सूर्य से ले ऊर्जा.
स्वस्तिमय औषधि रचें, स्वस्तिमय होवे प्रजा.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ विश्वे देवा ---------------------------------------------रु्रा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्निः स्वस्तये ।देवा अवन्त्वृभवः स्वस्तये स्वस्ति नो रुद्रः पात्वंहसः. ऋग्वेद ५/५१/१३</span><span class="mantra_translation">
ज्ञानी सभी कल्याणकारी और सुख दाता रहें
हमको बचाएं शत्रुओं से, और दुःख त्राता रहें.
परमात्मा सर्वज्ञ हितकारी हमें समृद्धि दे,
दुष्ट संहारक तू ही, हमको सदा सदबुद्धि दे.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ स्वस्ति मित्र वरुणा -----------------------------------मित्रावरुणा स्वस्ति पथ्ये रेवति ।स्वस्ति न इन्द्रश्चाग्निश्च स्वस्ति नो अदिते कृधि. ऋग्वेद ५/५१/१४</span><span class="mantra_translation">
यह प्राण और उदान वायु, हों हमें स्वस्तिमयी ,
वायु व् विद्युत् भी हमें पथ ले चलें उन्नतिमयी.
सर्वज्ञ परमेश्वर! हमें शुभ शक्ति समृद्धि मयी,
ही मार्ग पर तुम ले चलो, सब भांति जो स्वस्तिमयी.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ स्वस्ति पन्था मनुचरेम---------------------------------संगमेमही .पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव ।पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि ॥ ऋग्वेद ५/५१/१५</span><span class="mantra_translation">
हे! ईश हम रवि, चन्द्रमा का अनुसरण करते हुए,
कल्याण पथ पर ही चलें , तेरा ध्यान हिय धरते हुए.
परदुख द्रवित दानी व् ज्ञानी का हमें सत्संग दो..,
शुभ सात्विक वृतियों से पूरित, याज्ञिकों का संग दो.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ य़े देवानां ---------------------------------------------स्वस्तिभिः सदा नः.
  ऋग्वेद ७/३५/१५</span><span class="mantra_translation">
जो सत्य ज्ञानी अमर यशमय, यज्ञ अधिकारी महे.
वे सब हमें कल्याण भाव से, कीर्ति मय विद्या कहें.
सकल द्रव्यों से हमारा, शुभ करें हर काल में,
सुख शांति से रहना सिखा दें, इस जगत जंजाल में.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ येभ्यो माता ------------------------------------------मधुमत्पिन्वते पयः पीयूषं द्यौरदितिरद्रिबर्हाः ॥उक्थशुष्मान्वृषभरान्त्स्वप्रसस्ताँ आदित्यां अनुमदा स्वस्तये. ऋग्वेद १०/६३/३</span><span class="mantra_translation">
यह मातु पृथ्वी मधुर पय को, दे रही जिनके लिए.
अविछिन्न घन से व्याप्त द्यु , देता है जल जिनके लिए.
जो याज्ञिक शुभ कर्मों से , वृ्टि का आवाहन करें.
वे साथ हम सब के रहें और ज्ञान संवर्धन करें.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ नृचक्षसो -----------------------------------------------अनिमिषन्तो अर्हणा बृहद्देवासो अमृतत्वमानशुः।ज्योतीरथा अहिमाया अनागसो दिवो वर्ष्माणं वसते स्वस्तये.स्वस्तये॥  ऋग्वेद १०/६३/४</span><span class="mantra_translation">
अनिमेष शुभ चिन्तक सभी का, पूज्य ज्ञानी अति महे.
अमरता को प्राप्त मन, तथापि तन जग में रहे.
निष्पाप जीवन मुक्त ऐसे, ब्रह्मचारी का हमें.
सानिध्य करवा दो प्रभो, हम नमन करतें हैं तुम्हें.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ सम्राजो य़ेये सुवृधो यज्ञमाययुरपरिह्वृता दधिरे दिवि क्षयम्।---------------------------------------------------अदिति स्वस्तये.ताँ आ विवास नमसा सुवृक्तिभिर्महो आदित्याँ अदितिं स्वस्तये॥   ऋग्वेद १०/ ६३/५</span><span class="mantra_translation">
विद्वान् उन्नतिशील ज्ञानी, कर्म कर्ता श्रेष्ठ हों,
आदित्य सम ज्ञानी महत, सम्मान उनका यथेष्ठ हो.
हे मानवों! सम्मान उनका , हृदय से करना सदा.
कल्याण हित हेतु तुम्हें दें, ज्ञान की वे संपदा.
</span><span class="upnishad_mantra">ओम को वः स्तोमव स्तोमं राधति यं जुजोषथ विश्वे देवासो मनुषो यति ष्ठन।---------------------------------------------पर्षदात्यान्हः स्वस्तये.को वोऽध्वरं तुविजाता अरं करद्यो नः पर्षदत्यंहः स्वस्तये॥  ऋग्वेद १०/ ६३/ ६</span><span class="mantra_translation">
हे! ज्ञानियों तुम सबही, किसकी करते हो अभ्यर्थना,
कब कौन सुनता, पूर्ण करता है, तुम्हारी प्रार्थना.
बहु जन्मों के शुभ कर्म फल, कौन देता है तुम्हें.
एकमेव प्रभु, अघ से बचा , निष्पाप कर देता हमें.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ येभ्यो होत्रम ---------------------------------------------होत्रां प्रथमामायेजे मनुः समिद्धाग्निर्मनसा सप्त होतृभिः।त आदित्या अभयं शर्म यच्छत सुगा नः कर्त सुपथा स्वस्तये.स्वस्तये॥  ऋग्वेद १०/६३/६</span><span class="mantra_translation">
ज्ञानी मनस्वी यज्ञ करते, श्रद्धा से जिनके लिए,
एकाग्र मन और चित्त श्रद्धा , है बसी जिनके हिये.
वे सब अभय ज्ञानी सुखी हों, हे प्रभु वरदान दे,
हम भी सत-पथ के पथिक हों, प्रेरणा और ज्ञान दो.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ य ईशिरे -------------------------------------------------भुवनस्य प्रचेतसो विश्वस्य स्थातुर्जगतश्च मन्तवः।ते नः कृतादकृतादेनसस्पर्यद्या देवासः पिपृता स्वस्तये.स्वस्तये॥  ऋग्वेद १०/ ६३/ ८</span><span class="mantra_translation">
जड़-चेतना, सृष्टि जगत का, एक स्वामी ब्रह्म है,
उस ब्रह्म तत्त्व से विज्ञ ज्ञानी, अग्रगामी प्रणम्य है.
कृत-अकृत पापों से बचाकर, सुपथ दे और त्राण दें ,
उनके सभी शुभ भाव मंगल मय, हमें कल्याण दें.
</span><span class="upnishad_mantra">भरेषविन्द्रम --------------------------------------------भरेष्विन्द्रं सुहवं हवामहेऽंहोमुचं सुकृतं दैव्यं जनम्।अग्निं मित्रं वरुणं सातये भगं द्यावापृथिवी मरुतः स्वस्तये.स्वस्तये॥  ऋग्वेद १०/६३/९</span><span class="mantra_translation">
हे ! ईश हम श्री विजय के हित , जगत के संघर्ष में,
इह पारलौकिक जगत जीवन, दुःख में और हर्ष में.
जल, अग्नि, वायु, ज्ञान के, वैज्ञानिकों और ज्ञानियों,
का हृदय से आदर करें, कल्याण के हित प्राणियों.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ सुत्रामाणं ---------------------------------------------पृथिवीं द्यामनेहसं सुशर्माणमदितिं सुप्रणीतिम्।दैवीं नावं स्वरित्रामनागसमस्रवन्तीमा रुहेमा स्वस्तये.स्वस्तये॥  ऋग्वेद १०/६३/१०</span><span class="mantra_translation">
जगरूप भव सागर को हम सब ज्ञान रूपी नाव से,
ही पार कर सकतें हैं केवल, दिव्य शक्ति भाव से,
यह दिव्य नौका दोष हीन, अखण्ड हो रूचि पूर्ण हो.
इस दिव्य सात्विकता से जीवन, पूर्ण हो सम्पूर्ण हो.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ विश्वे यजत्रा ---------------------------------------अधि वोचतोतये त्रायध्वं नो दुरेवाया अभिह्रुतः।सत्यया वो देवहूत्या हुवेम शृण्वतो देवा अवसे स्वस्तये .स्वस्तये॥ ऋग्वेद १०/६३/११</span><span class="mantra_translation">मम रक्षा हेतु प्रणम्य ज्ञानी, आप ही उपदेश दें,रक्षित हों कैसे शत्रुओं से, ज्ञान इसका विशेष दें.दुःख दायी, दुर्गति से हमारी आप ही रक्षा करें.स्वस्ति रिद्धि को बुलाते, आप ही दीक्षा करें.</span><span class="upnishad_mantra">अपामीवामय ---------------------------------------अपामीवामप विश्वामनाहुतिमपारातिं दुर्विदत्रामघायतः।आरे देवा द्वेषो अस्मद्युयोतनोरु णः शर्म यच्छता स्वस्तये.स्वस्तये॥ ऋग्वेद १०/६३/१२</span><span class="mantra_translation">
रोगादि, नास्तिक बुद्धि सबकी, दूर ज्ञानी जन करो,
कुटिल पापी दुष्ट को , सतभाव से सत जन करो.
मन द्वेष मय , जिने विकारी, दूर वे हमसे रहें,
हम लोभ पाप विहीन हों, और शांति व् सुख से रहें.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ अरिष्टः ----------------------------------------------स मर्तो विश्व एधते प्र प्रजाभिर्जायते धर्मणस्परि।यमादित्यासो नयथा सुनीतिभिरति विश्वानि दुरिता स्वस्तये.स्वस्तये॥ ऋग्वेद १०/६३/१३</span><span class="mantra_translation">
पाप के पथ से बचातीं नीतियां नीतज्ञ की,
विज्ञ सत पथ से करातीं, विधि सकल वेदज्ञ की.
सकल पापों का निवारण, वे सहज ही कर सकें,
पूर्वजों की कीर्ति वृद्धि, अथ स्वयं ही कर सकें.
</span><span class="upnishad_mantra">देवासो अवथ ----------------------------------------यं देवासोऽवथ वाजसातौ यं शूरसाता मरुतो हिते धने।प्रातर्यावाणं रथमिन्द्र सानसिमरिष्यन्तमा रुहेमा स्वस्तये.स्वस्तये॥ ऋग्वेद १०/६३/१४</span><span class="mantra_translation">
हे! यज्ञ कर्ता ज्ञानियों, ऐश्वर्य , धन, संतान को,
आप करते प्रार्थना , प्रातः नमन भगवान् को.
हम उसी ऐश्वर्य दाता और दयालु ईश की,
वन्दना स्तुति करें, व्यापक परम जगदीश की.
</span><span class="upnishad_mantra">ॐ स्वस्ति नः पथ्यासु --------------------------------मरतो दधातन.धन्वसु स्वस्त्यप्सु वृजने स्वर्वति।स्वस्ति नः पुत्रकृथेषु योनिषु स्वस्ति राये मरुतो दधातन॥ ऋग्वेद १०/६३/१५</span><span class="mantra_translation">
मरू भूमि, भू पथ, व्योम, जल पथ, लोक द्यु आदि सभी,
कल्यानमय मम हेतु हों, इनसे न हो व्याधि कभी.
बहु शस्त्र युक्त हमारी सेनाएं, हमें कल्याण दें,
बहु विधि करें कल्याण और सब विधि हमें परित्राण दें.
</span><span class="upnishad_mantra">स्वस्ति रिद्धि ------------------------------------स्वस्तिरिद्धि प्रपथे श्रेष्ठा रेक्णस्वत्यभि या वाममेति।सा नो अमा सो अरणे नि पातु स्वावेशा भवतु देव गोपा.देवगोपा॥ ऋग्वेद १०/६२/१६</span><span class="mantra_translation">
हे! ईश सुन्दर मार्ग और धन अन्न से जो पूर्ण हो,
वन संपदा पूरित धरा, ज्ञानी बसें सम्पूर्ण हों.
रक्षित हों जो बहु ज्ञानियों से, वास हित हमको प्रभो,
सुलभ हो पृथ्वी तेरे, आशीष से हमको विभो.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ इषे त्वो-------------------------------------------पशून पाहि.
यजुर्वेद १/१</span><span class="mantra_translation">
प्रभु अ्न और बल के लिए आश्रय तुम्हारा मांगते,
शुभ कर्मों हित प्रेरित करो, व्यापक जनक हे सत्पते!हों स्वस्थ और निरोग गोधन, बछड़ो के संग पयवती,आधीन न हों दुर्जनों के, याज्ञिक हों शुभ श्री धनपती.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ आनो भद्रा------------------------------- रक्षितारो दिवे-दिवे.
यजुर्वेद २५/१४</span><span class="mantra_translation">शुभ स्वस्तिमय संकल्प प्रभुवर , आप हमको दीजिये.सर्वोच्च दुःख नाशक विचारक, प्राप्य हमको कीजिये.अप्रमादी हो विचारक , सोचें नहीं कुछ अन्यथा,नित्य उनके ज्ञान से ही , सबकी वृद्धि हो यथा.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ देवानां भद्रा
-----------------------------------------------प्रतिरन्तु जीवसे.
  यजुर्वेद २५/१५</span><span class="mantra_translation">
ज्ञानियों व् दानयों की स्वस्तिमय जो भावना,
भाव वैसे ही हमें, देना प्रभुवर कामना.
श्रेय व् ज्ञानी जनों से मित्रता, सानिध्य हो,जन दिव्य वे मम दीर्घ आयु, हेतु भी सम्बद्ध्य हों.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ तमीशानं ----------------------------------------पायुर दब्धः स्वस्तये.
  यजुर्वेद २५/११</span><span class="mantra_translation">
जग चराचर का नियामक और विधाता ईश तू,
एक तू ही सदबुद्धि दाता , आत्म भू जगदीश तू.
हम बुलाते हैं तुझे, धन पुष्टि दाता एक तू .
कल्याण हम सबका करो, सृष्टि विधाता एक तू.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो -------------------------------------नो बृहस्पतिर दधातु.
  यजुर्वेद २५/१९</span><span class="mantra_translation">हे! ईश मम कल्याण को , कल्याण का पोषण करें,हे विश्व वेदः पूषा, श्री मय ज्ञान संवर्धन करें.हे बृहस्पति! अरिष्ट नेमिः , स्वस्ति कारक आप हैं,
त्रिविध ताप हों शांत जग के, देते जो संताप हैं.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ भद्रं कर्णेभिः -------------------------------------------देवहितं यदायुह.
  यजुर्वेद २५/२१</span><span class="mantra_translation">हे! देवगण कल्याणमय, हम वचन कानों से सुनें,कल्याण ही नेत्रों से देखें, सुदृढ़ अंग बली बनें .आराधना स्तुति प्रभो की, हम सदा करते रहें,
मम आयु देवों के काम आये हम नमन करते रहें.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ अग्न आयाहि ------------------------------------------सत्सि वहिर्षी.
ॐ सामवेद ॐ १/१
</span>
<span class="mantra_translation">
हे ईश ! सुख दाता तू ही, ब्रह्माण्ड विश्व में व्याप्त है,
ऐश्वर्य शांति ज्ञान दाता , की कृपा पर्याप्त है.यज्ञादि शुभ कार्यों में, प्रभुवर आप ह स्तुत्य हैं,वास हृदयों में करो, प्रभु आप ही तो नित्य हैं.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ त्वमग्ने--------------------------------------देवेभिर्मानुशेजनो.
सामवेद १/२
</span><span class="mantra_translation">प्रभु श्रेय कर्मों के प्रणेता और प्रेरक आप हैं,सबके हित साधक, हरो दुःख आदि जो संताप हैं.हे! ज्योति व् ज्ञान स्वरूपी, ज्ञानियों के ज्ञान में,दिव्य गुण बन आ बसो, उनके हृदय स्थान में.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ य़े त्रिशप्ता--------------------------------------अघ दधातु मे.
अथर्ववेद १/१/१</span><span class="mantra_translation">हे! वेद उपदेष्टा, प्रभु परब्रह्म हे परमात्मा!बल तुम्हीं तन मन में देना, शक्तिमय हों आतमा.
यह जग चराचर तुमसे पोषित, और परिवर्तित हुए,
सत, रज, तमो गुण, तत्व इन्द्रिय, प्राण आवर्तित हुए.
</span><span class="upnishad_mantra">
अथ शांति प्रकरणं
 
ॐ शनं इन्द्राग्नी -------------------------------------------वाजसातौ.
  ऋग्वेद ७ /३५/१</span><span class="mantra_translation">प्रभु ! मेघ, विद्युत्, जल, सभी, मम हेतु हितकारी बनें,विद्युत् व् औषधियां श्री दाता, हों सुख कारी बनें.इह दृष्टि से भी वायु विद्युत् , सर्व कल्याणक सदा,तेरी कृपा से तत्व सब, श्री, शांति की दें सम्पदा.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो भघः-----------------------------------------------पुरुजातो अस्तु.
  ऋग्वेद ७ /३५ /२</span><span class="mantra_translation">ऐश्वर्य, श्री, एवं प्रसंशा, आपसे जो प्रदत्त हैं.सुख, शांति, धन दायक बनें, हम आपके प्रभु भक्त हैं.सब लाभकारी हों नियम, हित ेतु हेतु न्यायाधीश हों,अणु-कण जगत का शुभ्र हो, यदि आपके आशीष हों.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो धाता ----------------------------------------------सुखानि सन्तु.
  ऋग्वेद ७/३५/३/</span><span class="mantra_translation">धारक व् पोषक ब्रह्म है, वह शांति कारक हो हमें,अन्नादिमय भू, ज्योतिमय द्यु, शांति कारक हों हमें.महती धरा और मेघ वर्षा, शांति कारक हों हमें.
शुभ्र स्तुति ज्ञानियों की, शांति कारक हो हमें.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो अग्निर्ज्योतिर्नीको -----------------------------------अभिवातु वातः.
  ऋग्वेद ७/३५/४</span><span class="mantra_translation">ज्योतिर्स्वरूपी ब्रह्म दिव्य का, तेज अति सुख पूर्ण हो,शुभ आचरण धर्मात्माओं के, हमें सुख पूर्ण हों.
उपदेश कर्ता और अध्यापक, ज्ञान हित अभ्यर्थना,
प्राण और अपान व् गमन शीला, वायु सुख दें, प्रार्थना.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो द्यावा पृथ्वी -------------------------------------------------जिष्णुः
  ऋग्वेद ७/३५/५</span><span class="mantra_translation">मम पूर्वजों के कर्म उत्तम, भूमि विद्युत् आदि भी.वृक्ष औषधियां, वनस्पति, प्राकृतिक तत्त्व आदि भी.अन्तरिक्षम लोक हमको, लाभ दें सुख शांति दें.
भावना और स्नेह स्वामी, हार्दिक सुख शांति दें.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शंनम इन्द्रो ---------------------------------------------------श्रुनोतु.
  ऋग्वेद ७/३५/६</span><span class="mantra_translation">
यह दिव्य गुणमय सूर्य भी, मम हेतु धन, सुख, स्रोत हों.
रवि, रश्मि, आवृत लाभकारी, ही सभी जल स्रोत हों.
दुष्ट दंडक , शांत रूपी, ब्रह्म सुख का रूप हो.
शुभ वाणी से हमको विवेचक ज्ञान दें, जो अनूप हो.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शं न सोमो ----------------------------------------------------शम्वस्ु वेदिः
ऋग्वेद७/३५/७/, यजुर्वेद १५/१२</span><span class="mantra_translation">मम हेतु प्रभु अन्नादि तत्त्व भी , शांति दायक हों सभी,सब वनस्पतियाँ , औषधी भी, स्वास्थ्य दायक हों सभी.यज्ञ वेदी, कुंडादिक् भी शांति दायक हों सभी.शुभ कार्य, साधन भूत जड़, वस्तु सहायक हों सभी.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शं न सूर्य उरु
चक्षा----------------------------------------------------संत्वापः.
  ऋग्वेद ७/३५/८</span><span class="mantra_translation">नदियाँ, जलद, सारी दिशाएं , हे! प्रभो, सुख रूप हों,दृढ़ गगन चुम्बी, अचल गिरि भी, लाभकारी अनूप हों.यह उदित व् दैदीप्य रवि, सागर महासागर सभी.सुख शांति व् समृद्धि के हों, सिद्ध य़े आकर सभी.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो अदितिर भवतु
---------------------------------------------शम्वस्तु वायुः.
  ऋग्वेद ७/३५/९</span><span class="mantra_translation">यह अन्न उपजाती धरा, उसमें सहायक वायु भी,पुष्टि कर्ता सूर्य देता, ऊर्जा और आयु भी.विदुषी माताएं प्रभो! मम हेतु सुख की स्त्रोत हों.
'मृदुल' भाषी, शान्तिप्रद, और ज्ञान की शुभ ज्योति हों.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो देवः ------------------------------------------------------पतिरस्तु
शम्भु.
  ऋग्वेद ७/३५/१०</span><span class="mantra_translation">हे ईश! ज्योतिर्मय रवि, रक्षक हमारा हो सदा,दीप्ति मय ऊषाएं उज्जवल , शांतिमय हों सर्वदा.यह मेघ भी कल्याण कारी , हो सकल जग के लिए.जगत स्वामी ब्रह्म हो, सुख लाभ प्रद सबके लिए.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो देवा ------------------------------------------------------विश्व
देवा शंयो अप्याः.
  ऋग्वेद ७/३५/११</span><span class="mantra_translation">
आत्मदर्शी, तत्त्व ज्ञानी, ज्ञानमय उनकी गिरा.
धन व् विद्या दान कर्ता, लोक सुख एवं धरा.
यह सृष्टि होवे स्वस्तिमय, और शांति सुख कारक बने.
यदि आपकी प्रभु हो कृपा, और आप मम धारक बनें.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो अज-----------------------------------------------------------------
देव गोपा.
  ऋग्वेद ७/३५/१३</span><span class="mantra_translation">
रक्षक, अजन्मा, ब्रह्म सुख दाता , सदा त्वमेव है,
तू एक रस, सुख शांति दाता, विरल तू एकमेव है.
अन्तरिक्ष स्थित मेघ, सागर , सब हमें सुख दे सकें.
नौका जलों की पार कर दें और कहीं हम ना रुकें.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ इन्द्रो विश्वस्य
---------------------------------------------------------चतुष्पदे.
  यजुर्वेद ३६/८</span><span class="mantra_translation">विश्वानि जग कर्ता प्रकाशित, ब्रह्म ही एकमेव है.द्विपद , चतुष्पद , प्राणियों का , शांति दाता देव है.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो वातः ----------------------------------------------------------अभिवर्षतु
  यजुर्वेद ३६/१०</span><span class="mantra_translation">
यह तप्त रवि, बहता पवन, घन, नाद, जल वर्षित करें.
प्रभु आपकी यदि हो कृपा तो , यह सभी हर्षित करें.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ अहानि शं भवतु
-------------------------------------------------सुविताय शंयोः.
  यजुर्वेद ३६/११</span><span class="mantra_translation">
जल, अग्नि, वायु,, मेघ, विद्युत् , चन्द्र, रवि, सारी धरा.
दिन रात सब अपनी कृपा से, हे प्रभो सुखमय करा.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ शन्नो देवी --------------------------------------------------------------वन्तु
नः.
  यजुर्वेद ३६/१२</span><span class="mantra_translation">हे! सर्व व्यापक, दिव्य रूपी, दिव्य दृष्टि कीजिये.इष्ट सुख की पूर्ण तृप्ति, दया वृष्टि कीजिये.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ द्यौ शांति -----------------------------------------------------------शांति
रेधि.
  यजुर्वेद २६/१७</span><span class="mantra_translation">
रवि, जल, धरा, द्यु लोक, औषधि , वनस्पतियाँ शांति दें.
ज्ञानी, मनस्वी, ज्ञान उनका, चित्त को सत शांति दे.
सर्वत्र ही हो शांति-शांति, शांति शुभ अविभाज्य हो.
शुचि शांतिमय परिवेश हों, शांति का साम्राज्य हो.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ तच्च्क्षुरदेवहितं
---------------------------------------------------शरदः शतात.
यजुर्वेद ३६/२४</span><span class="mantra_translation">
हे! सर्व दृष्टा , सर्व हितकारी अनादि काल से,
सत्ता यथावत देखते हो, सबको तीनों काल से.
न दीन हों हम हे प्रभो! देखें सुनें मुखरित रहें.
सौ वर्ष या इससे अधिक हे नाथ ! हम जीवित रहें.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ यज्जाग्रतौ -------------------------------------------------------शिव
संकल्प मस्तु.
  यजुर्वेद ३४/१</span><span class="mantra_translation">
जागते , सोते, सुषुप्ति काल में, मन दूर से भी दूर जाता है कहीं,
मन की गति की साम्यता, कहीं कोई कर सकता नहीं.
मन इन्द्रियों का है प्रकाशक, ना कभी विचलित रहे.
वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ येन कर्मान्यपसों
-----------------------------------------------शिव संकल्पमस्तु.
  यजुर्वेद ३४/२</span><span class="mantra_translation">
जिस मन के द्वारा दृष्ट कर्मों को मनस्वी कर रहे,
सत कर्म रत सबकी प्रगति, वे सब तपस्वी कर रहे.
वह मन हमारा, प्राणियों के हित में रत नियमित रहे.वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ यतप्रज्ञानमुत
------------------------------------------------------शिव संकल्पमस्तु.
यजुर्वेद ३४/३
यजुर्वेद ३४</span><span class="mantra_translation">
मन ज्योतिरूपी, धैर्य रूपी , बुद्धि उत्पादक महे,
यही अमर सत्ता चेतना की, ज्ञान की साधक रहे.
न कर्म किंचित, हो सकें, साथ न यदि चित रहे,
वह मन हमारा सत्पते!, शिव सत्य संकल्पित रहे.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ येनेदं भूतं
---------------------------------------------------------शिव
संकल्पमस्तु
  यजुर्वेद ३४/४</span><span class="mantra_translation">
गत, काल, आगत, वर्तमान को , मन ही है, बांधे हुए.
सप्त होता याज्ञिक, करें यज्ञ मन साधे हुए.
यही अमर सत्ता प्राणियों में तो सदा जीवित रहे.
वह मन हमारा सत्पते, शिव सत्य संकल्पित रहे.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ यस्मिन्न -----------------------------------------------------शिव
संकल्पमस्तु.
  यजुर्वेद ३४/५</span><span class="mantra_translation">ऋग, साम,यजुः जिसमें प्रतिष्ठित , मन विरल वह तत्त्व ह.नाभि में रथ की अरों सम, चित्त अमृत सत्व है.सूत्र में मणियों के सम ही, ज्ञान भी मन चित रहे.वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ सुषारथिर ----------------------------------------------------शिव
संकल्पमस्तु.
  यजुर्वेद. ३४/६</span><span class="mantra_translation">अति वेगमय अश्वों को जैसे, कुशल सारथी, साधते,त्यों हृदय स्थिर अजर मन को, ज्ञान से हैं बांधते.अति वेग वाला मन हमारा , ना कभी विचलित रहे.वह मन हमारा सत्पते! शिव सत्य संकल्पित रहे.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ स नः पवस्व ------------------------------------------------राजन्नोषधीभ्या.
  सामवेद उत्तरार्चिक १/३</span><span class="mantra_translation">सब अन्न औषधियां , वनस्पति शांति दायक हों सदा.अश्व गो-धन लाभकारी , प्रगति दायक सर्वदा.दो शांतिमय परिवेश प्रभुर! दिव्य ज्योतिर्मय विभो.सुख शांति ही सर्वत्र कर दो. दिव्य शांतिमय प्रभो.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ अभयं नः ---------------------------------------------------नो अस्तु.
  अथर्ववेद १९/१५/५/</span><span class="mantra_translation">द्यु लोक पृथ्वी अन्तरिक्षम , भी अभयदाता बनें.भयहीन हों विचरण करें, यदि आप प्रभु त्राता बनें.ऊपर व् नीचे सामने , पीछे से भी भयहीन हों.
दो शक्ति कि सर्वत्र ही, हम सब अभय हों प्रवीण हों.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ अभयं मित्रा दभयम--------------------------------------------मम
मित्रं भवन्तु.
  अथर्ववेद १९/५/६</span><span class="mantra_translation">अभय मित्र से, अभय शत्रु से, अभय दिन व् रात से.अभय ही सर्वत्र होवे, ज्ञात से विज्ञात से,सब दिशायें मित्र सम हों, हे! प्रभो वरदान दो.हे जगपते! कर दो कृपा, हमको अभय का दान दो.</span><span class="upnishad_mantra">
यज्ञ प्रकरणं
_______________________-
आचमन मन्त्र
अमृतो ---------------------------------------------------श्रयातं अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा.. १ .. तैत्तरीयॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा .. २ .. ॐ सत्यं यशः श्रीर्मय श्रीः श्रयतां स्वाहा. तैत्तरीय आरण्यक १०/३२/३५</span><span class="mantra_translation">
हे! ईश अविनाशी मेरे, मेरे रक्षक व् धारक आप हैं.
मैं आपसे रक्षित रहूँ, हों शेष जो संताप हैं.
सब सत्य यश, लौकिक, अलौकिक पा सकूं, वरदान दे.
दृढ़ आत्मिक शक्ति बढ़े, हमको प्रभो! उत्थान दे.</span><span class="upnishad_mantra">
अंग स्पर्श
ॐ वाङ् म आस्येऽस्तु . ॐ नसोर्मे प्रणोऽस्तु . ॐ अक्ष्णोर्मेचक्षुरस्तु . वांग्म----------------------------------------------------कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु . ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु . ॐउर्वोर्मे ओजोऽस्तु . ॐ अरिष्टानि मेऽङ्गानि तनूस्तन्वा मे सह सन्तु. पारस्करगृह्य १/३/२५</span><span class="mantra_translation">नासिका में ्राण घ्राण शक्ति, दृश्य शक्ति, नयन में,कानों में दो श्रवण शक्ति, वाक् शक्ति वचन में.बल भुजाओं में अतुल, जंघाओं में सामर्थ्य दो.सब अंग रोग विहीन प्रभु, जीवन को सात्विक अर्थ दो.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ भूर्भुवः स्वः .-------------------------------------
गोमिलगृह्य सूत्र १/१/११</span><span class="mantra_translation">
ॐ ही प्राणस्वरूपी, सुखस्वरूपी ब्रह्म हैं.
दुःख विनाशक , सृष्टि धारक , ॐ ही परब्रह्म है.
</span><span class="upnishad_mantra">
अग्न्याधानाम
ॐ भूर्भुवः स्वः -------------------------------------द्यायादधे.
यजुर्वेद ३/५
</span>
<span class="mantra_translation">
अन्नादि, श्री, ऐश्वर्य, हित पृथ्वी, धरातल पर तेरे.
करुँ अग्नि की स्थापना, गुण अ्नि सम होवें मेरे.
मैं राष्ट्र के हित भूः , भुवः, स्वः, गुण स्वरूपी बन सकूं.
द्युलोक सा विस्तृत हृदय, और भूमि सा मन बन सकूं.
</span><span class="upnishad_mantra">
अग्नि प्रदीपन
ॐ उद्बुद्ध्य ------------------------------------------सीदत.
यजुर्वेद १५/५४.
</span>
<span class="mantra_translation">
हे! अग्नि , तुम हो प्रज्ज्वलित, यजमान याज्ञिक के लिए,
सहयोग से वे कर सकें , उपकार हित जग के लिए.
यज्ञ वेदी श्रेष्ठ स्थल, भेद सब मिटते जहॉं ,
आओ बैठो याज्ञिकों, दुःख यज्ञ से हटते यहॉं.
</span><span class="upnishad_mantra">
समिधाधान मन्त्र
ॐ अयंत इध्म आत्मा-------------------------------इदं न मम .
आश्र्व्लायन गुह्य १/१० १२
</span>
<span class="mantra_translation">
यह आत्मा है देव अग्ने! अगनि को समिधा यथा.
हों प्रज्ज्वलित अग्ने महे! सत पथ प्रगति की दो प्रथा.
ज्ञान आत्मिक, पशु, प्रजा, श्री ब्रह्म हों, इच्छित यही.
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ समिधाग्निम -----------------------------------इदं न मम.
यजुर्वेद ३/१
</span>
<span class="mantra_translation">
अतिथि के सत्कार की ज्यों , प्रेम श्रद्धा की प्रथा,
अग्नि को समिधा व् घृत, सेवित करो याज्ञिक यथा.
विधि नियम से हव्य द्रव्यों की आहुति, अर्पित यही.
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ सुसमिद्धाय-------------------------------------इदं न मम.
यजुर्वेद ३/२
</span>
<span class="mantra_translation">
ज्वाजल्यान प्रदीप्त अग्नि में, तप्त घी की आहुति,
यज्ञ की वैदिक विधि, यह कथित करती है श्रुति.
सर्व व्यापक ब्रह्म को, मम आहुति अर्पित यही.
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ तंत्वा समिदिभर ---------------------------गिरसे इदं न मम.
यजुर्वेद ३/३
</span><span class="mantra_translation">समिधा व् घृत और आहुति से, अग्नि और प्रदीप्त हो,हे ! अग्नि अद्भुत शक्तिमय, तू और-और प्रदीप्त हो.
यह आहुति पृथिविस्थ अग्नि हेतु है, अर्पित यही,
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.</span><span class="upnishad_mantra">
घृताहुति मंत्रः
ॐ अयंत इध्म आत्मा -----------------------------इदं न मम.
आश्र्व्लायन गुह्य१/१०/१२</span> <span class="mantra_translation">
इसका अर्थ पूर्व में दिया जा चुका है.
</span><span class="upnishad_mantra">
जल प्रसेचन मन्त्र ( जल प्रोक्षणं )
ॐ अदिते -----------------पूर्व दिशा में जल का सिंचन.
ॐ देव सवितः -------------नः स्वदतु.
इस मन्त्र से चारों दिशा में जल डालें.
</span>
<span class="mantra_translation">
सृष्टि रचयिता , आत्म भू, ज्ञानस्वरूपी अनुमते.
अखिलेश हे! अविभाज्य हे! ज्योतिस्वरूपी जगपते!
वाचस्पति हे! दिव्य शक्ति , वाणी में माधुर्य दो.
मम बुद्धि को पावन करो, इस जन्म को सौंदर्य दो.
</span> <span class="upnishad_mantra">
आघारावाज्यभागाहुती
ॐ अग्नये स्वाहा. इदं अग्नय इदं न मम.
ॐ सोमाय स्वाहा. इदं सोमाय इदं न मम .
गोभिल गुह्य सूत्र १/८/५.
</span>
<span class="mantra_translation">
हे! न्याय कारी अग्रणी, शांतस्वरूपी, अति मही.
अर्पित है आहुति ब्रह्म को, इसमें मेरा किंचित नहीं.
</span><span class="upnishad_mantra">
आज्यभागाहुति
ॐ प्रजापते स्वाहा. इदं प्रजापतये इदं न मम.
ॐ इन्द्राय स्वाहा. इदं इन्द्रयाय इदं न मम.
यजुर्वेद २२/ ६/ २७
</span>
<span class="mantra_translation">
सर्वस्व अर्पित ब्रह्म को, जो है प्रजा पालक मही.
यह आहुति सर्वज्ञ प्रभु हित , मेरा कुछ किंचित नहीं.
</span><span class="upnishad_mantra">
प्रातः काल की आहुतियाँ
ॐ सूर्यो ज्योति ज्योतिर सूर्याः स्वाहा.
ॐ ज्योति सूर्यः सूर्य ज्योतिः स्वाहा .
यजुर्वेद ३/९
</span>
<span class="mantra_translation">
सूर्य ज्योतिर्मय महिम है, ज्योति का रवि स्रोत्र है.
सूर्य कांतिमय महिम मही, ब्रह्म की रवि ज्योत है.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ सजूर्देवेन सवित्रा सजूरुष सेंद्रवात्या. जुशान सूर्यो वेतु स्वः.
यजुर्वेद ३/१०
</span><span class="mantra_translation">
ज्यों प्राण शक्ति , नित्य प्रातः , दे रहा आदित्य है.
त्यों दीजिये तेजस्व प्रभुवर! आप ही तो नित्य हैं.
</span><span class="upnishad_mantra">
सायंकाल आहुति के मन्त्र
ॐ अग्नि ज्योतिर ज्योतिराग्निः स्वाहा .१
ॐ अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा .२
ॐ अग्नि ज्योतिर ज्योतिराग्निः स्वाहा .३
जुर्वेद यजुर्वेद ३/९</span><span class="mantra_translation">
ज्योति ज्योतिर्मय रवि की, जगत को ज्योतित करे.
रवि कान्ति से ऊषा सुशोभित, जगत को शोभित करे.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ सजूर्देवेन सवित्रा ------------------------------------अग्निर्वेतु स्वाहा
  यजुर्वेद ३/१०</span><span class="mantra_translation">ज्योतिर्मयी प्रभु स्वप्रकाशी, कांतिमय सर्वस्व है,ज्ञानियों के प्रगति दाता, ज्ञानमय वर्चस्व हैं.सृष्टि उत्पादक प्रभो को, आहुति स्वीकार हो.यज्ञाग्नि के संयोग से, सर्वत्र इनका प्रसार हो.</span><span class="upnishad_mantra">
प्रातः और सायः दोनों काल के मन्त्र.
ॐ भूरग्नये -------------------------------------नेभ्यः इदं न मम.
तैत्तरीय आरण्यक १०/२
</span>
<span class="mantra_translation">
प्राण व् ज्ञानस्वरूपी, प्राण प्रिय तू ही मही.
यह आहुति पराणाय हित, इसमें मेरा किंचित नहीं.
भूः, भुवः, स्वः, प्राण, वायु, अग्नि, रवि सब कुछ वही.
यह आहुति उस पूर्ण प्रभु को मेरा कुछ किंचित नहीं.
</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ आपो ज्योति --------------------------------स्वरो स्वाहा
तैत्तरीय आरण्यक १०/१५
</span>
<span class="mantra_translation">
सर्व रक्षक सुख प्रदाता , अति महिम सर्वेश हे!.
अमर शुचि आनंद दाता, परम प्रभु परमेश हे!
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ यां मेधा -------------------------------------कुरु स्वाहा.
यजुर्वेद ३२/१४.
</span>
<span class="mantra_translation">
आत्मदर्शी और विवेकी बुद्धि का, ज्ञानरूपी हे प्रभु! वरदान दे.
बुद्धि मेधावी की करता प्रार्थना, सत बुद्धि मेधा का हमें भी दान दे.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ विश्वानि देव -------------------------------------तन्नासुव.
</span><span class="mantra_translation">अनुवाद पीछे है.poo</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ अग्ने नय सुपथा ------------------------------उक्तिम विधेम.
अनुवाद पीछे है.
</span>
<span class="mantra_translation">
आनंदरूपी, सुख स्वरूपी, ब्रह्म को मम नमन हो.
शुभ स्वस्ति मंगल मोक्ष दाता को, पुनि-पुनि नमन हो.
यजुर्वेद १६/४
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ सर्व वै पूर्ण स्वाहा.------------------पूर्णाहुति.
तुलना शत पथ ५/२/२/१
</span>
<span class="mantra_translation">
हे! सर्व शक्तिमन विभो! सृष्टा तेरा साम्राज्य है.
तेरा रचित अणु-कण प्रभो! परिपूर्ण है, अविभाज्य है.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
पूर्णाहुति मन्त्र
ॐ पूर्णमदः , पूर्ण मिदं , पूर्णात पूर्ण मुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्ण मादाय , पूर्ण मेवा वशिष्यते.
</span><span class="mantra_translation">
परिपूर्ण पूर्ण है , पूर्ण प्रभु, यह जगत भी प्रभु पूर्ण है,
परिपूर्ण प्रभु की पूर्णता से, पूर्ण जग सम्पूर्ण है.
परिपूर्ण प्रभु परमेश की यह पूर्णता ही विशेष है.
ॐ ॐ ॐ
</span><span class="upnishad_mantra">
सामान्य प्रकरणं
व्यह्रुत्याहुतिः
गोपथ १/८/४
</span>
<span class="mantra_translation">
प्रातः और सायं के मन्त्रों में पीछे देखें.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
स्वष्टिकृदाहुति मंत्रः
ॐ यदस्य कर्मणो
----------------------------------------------------स्वष्टिकृते इदं न
मम .
</span><span class="mantra_translation">
शुभ कामनाओं को प्रभु , परिपूर्ण करता जानता.
न्यूनाधिक हमसे हुआ, उसे अन्यथा नहीं मानता.
हो आहुति प्रभु काम सिद्धक, मेरा कुछ किंचित नहीं.
शतपथ का.१४/९/४/२४.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
प्राजापत्यहुति मंत्रः
ॐ प्रजापतये स्वाहा. इदं प्रजापतये. इदं न मम.
यह आहुति परब्रह्म के हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.
</span>
<span class="mantra_translation">
इससे मौन होकर एक आहुति दें.
आज्याहुति मंत्रः
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ भूर्भुवः स्वः.-------------------------------------------इदं न मम.
  ऋग्वेद ९ / ६६/ १९.</span><span class="mantra_translation">
सुख ज्योतिरूपी, दुःख विनाशक, प्राण प्राणाधार हो.
दुःख, दुर्गुणों के हो निवारक, अन्न बल आगार हो.
दुर्भाग्य, दुःख, आपत्तियों से हो सदा वंचित मही,
यह आहुति उस शुद्धि कर्ता को , मेरी किंचित नहीं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ भूर्भुवः स्वः. अग्निर्रिशी ----------------------------इदं न मम.
यजुर्वेद २९/९ऋग्वेद ९/६६/२०.</span><span class="mantra_translation">
सुख, ज्योति रूपी, दुःख विनाशक, प्राण सम प्रभु, धीमहे.
हे! सर्व हितकारी पुरोहित, परम प्रभु, हमें ईमहे
प्रार्थना सत ऋत ह्रदय की, याचना इच्छित यही.
यह आहुति उस सर्व दृष्टा को, मेरी किंचित नहीं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ भूर्भुवः स्वः. अग्ने पवस्व स्वपा --------------------------पवमानाय इदं न मम.
  यजुर्वेद ८/३८. ऋग्वेद ९/६६/२२</span><span class="mantra_translation">
हे! सुख स्वरूपी, दुःख विनाशक ब्रह्म, सर्वाधार हो.
शुभ कर्म का करता बना, वर्चस्व के आगार हो.
पुष्टि, पराक्रम, संपदा, दे दो हमें इच्छित यही.
यह आहुति उस शुद्धि कर्ता, को मेरी किंचित नहीं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ भूर्भुवः स्वः. प्रजापते
------------------------------------प्रजापतये इदं न मम.
  यजुर्वेद, २३/६५, ऋग्वेद १०/१२१/१०</span><span class="mantra_translation">हे! ्राण प्राण प्राणाधार सर्वोपरि हैं, आप अनन्य हैं.कोई न तुमसे है बड़ा, जड़- चेतना में नगण्य है.धन धान्य दो, सब कामनाएं, पूर्ण हों इच्छित यही.यह आहुति है, प्रजापति हित, मेरा कुछ किंचित नहीं.</span><span class="upnishad_mantra">
अष्टाज्याहुती
ॐ त्वम् नो अग्ने
-------------------------------------------वरुनाभ्याम इदं न मम.
ऋग्वेद ४/१/४
</span>
<span class="mantra_translation">
प्रभु दिव्य विद्वानों के ज्ञाता, श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठ हैं.
दुर्गुणों को दूर, करदें , द्वेष भाव यथेष्ठ हैं.
हमें श्रेष्ठतम बल तेज दो,मम कामना समुचित यही
यह आहुति अग्नि, वरुण हित मेरा कुछ किंचित नहीं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ स त्वं नो अग्ने
अवसो------------------------------------------------इदं न मम.
  ऋग्वेद ४/१/५/</span><span class="mantra_translation">
सर्वज्ञ हे! ज्योति स्वरूपी आप रक्षक हैं महे.
हों प्राप्त ऊषा काल में, प्रार्थना हम कर रहे.
हमको सुगमता से मिलें , प्रभु आप है, इच्छित यही.
यह आहुति अग्नि, वरुण हित मेरी कुछ किंचित नहीं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ इमं मे वरुण---------------------------------------------------इदं
वरुणाय इदं न मम.
  ऋग्वेद १/२५/१९</span><span class="mantra_translation">
मैं, आपसे रक्षा का याचक आपको ही पुकारता.
प्रार्थना सुनिए विनत हूँ, आज करिए सहायता.
शुचि भाव पूरित याचना है, बस प्रभु अर्पित यही.
यह आहुति अति श्रेष्ठ प्रभु को , मेरी कुछ किंचित नहीं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ तत्वा यामी ब्रह्मणा--------------------------------------------इदं न मम.
  ऋग्वेद १/२४/११</span><span class="mantra_translation">
स्तुत्य हे! वरणीय रक्षक, आप ही सर्वज्ञ है.
हम वेद मन्त्रों, स्तुति, आहुति से करते यज्ञ हैं.
सुन प्रार्थना तत्काल, आयु दीर्घ हो इच्छित यही.
यह आहुति सर्वोच्च प्रभु हित , मेरी कुछ किंचित नहीं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ य़े ते शतं ------------------------------------------------स्वर्केभ्यः
इदं न मम.
  कात्यायन श्रौत २५/१/११</span><span class="mantra_translation">
इस सृष्टि के बंधन शतं , सहस्त्रं विस्तृत विभो.
इन सुदृढ़ पाशों को अब तो, शिथिल कर दो हे! प्रभो.
यज्ञ की बाधाएं ज्ञानी हर सकें , इच्छित यही.
यह आहुति प्रभु, रित्त्विजों हित, मेरी कुछ किंचित नहीं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ अयाश्चागने ----------------------------------------------इदमग्नये
अयसे इदं न मम.
  कात्यायन १/१५.</span><span class="mantra_translation">निर्दोष लोगों के तुम्हीं, रक्षक सदा व्यापक प्रभो.इस यज्ञ को कर दो सफल, हे सर्व कल्याणक विभो.दुःख, रोग, पाप निःशेष हों, कर दो कृपा सिंचित मही.यह आहुति परब्रह्म प्रभु हित, मेरी कुछ किंचित नहीं.</span><span class="upnishad_mantra">
ॐ उदुत्तम वरुण ----------------------------------------च इदं न मम.
  ऋग्वेद १/२४/१५</span><span class="mantra_translation">
बंधन हमारे शिथिल हों, वरणीय प्रभो परमेश हे!
निष्पाप, नियमित आचरण, हम कर सकें अखिलेश हे!
बंधन, विकार विहीन मन हो, कर्म न सिंचित कहीं.
यह आहुति हित मोक्ष दाता, मेरी कुछ किंचित नहीं.
</span>
<span class="upnishad_mantra">
ॐ भवतन्तः समनसौ-------------------------------इदं जात वेदोभ्याम इदं न मम.
  यजुर्वेद ५/३</span><span class="mantra_translation">
सम बुद्धि, मन , सम ज्ञानमय, निष्काम जन होवें सभी.
यज्ञ अथवा यज्ञपति का हनन ना होवे कभी.
हम हों स्वयं कल्याणकारी. दिव्य मन वांछित यही.
यह आहुति चत दिव्य जन को, मेरी कुछ किंचित नहीं.
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