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"कविता मेरी / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
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आलंबन, आधार यही है, यही सहारा है | आलंबन, आधार यही है, यही सहारा है | ||
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कविता मेरी जीवन शैली, जीवन धारा है | कविता मेरी जीवन शैली, जीवन धारा है | ||
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यही ओढ़ता, यही बिछाता | यही ओढ़ता, यही बिछाता | ||
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सबका है वह दर्द जिसे मैं | सबका है वह दर्द जिसे मैं | ||
+ | अपना कहता हूँ | ||
+ | देखो ना तन लहर-लहर | ||
+ | मन पारा-पारा है। | ||
− | + | पानी-सा मैं बहता बढ़ता | |
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− | + | उत्सव-सा अपनों से | |
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− | + | उत्सव ही है राग हमारा | |
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+ | नाता मेरा धूप-छाँह से | ||
घाटी टीलों से | घाटी टीलों से | ||
− | + | मिलने ही निकला हूँ | |
− | मिलने ही निकला | + | |
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घर से पर्वत-झीलों से | घर से पर्वत-झीलों से | ||
− | + | बिना नाव-पतवार धार में | |
− | बिना नाव-पतवार धार में | + | दूर किनारा है । |
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− | दूर किनारा | + |
13:00, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
आलंबन, आधार यही है, यही सहारा है
कविता मेरी जीवन शैली, जीवन धारा है
यही ओढ़ता, यही बिछाता
यही पहनता हूँ
सबका है वह दर्द जिसे मैं
अपना कहता हूँ
देखो ना तन लहर-लहर
मन पारा-पारा है।
पानी-सा मैं बहता बढ़ता
रुकता-मुड़ता हूँ
उत्सव-सा अपनों से
जुड़ता और बिछुड़ता हूँ
उत्सव ही है राग हमारा
प्राण हमारा है ।
नाता मेरा धूप-छाँह से
घाटी टीलों से
मिलने ही निकला हूँ
घर से पर्वत-झीलों से
बिना नाव-पतवार धार में
दूर किनारा है ।