भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरी नींदः रेत की मछली / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("मेरी नींदः रेत की मछली / कैलाश गौतम" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:23, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
मेरी नींद रेत की मछली हुई मसहरी में ।
धान पान थे खेत हमारे
नहरें लील गई
जैसे फूले कमल
ताल की लहरे लील गईं
आग लगी है घर की मीठी गंगा लहरी में ।।
कालिख झरती धूप
यहाँ की हवा विषैली है
सबसे ज़्यादा धोबी की ही
चादर मैली है
दिखलाई देते हैं तारे भरी दुपहरी में ।।
मुखिया खाते दूध भात
हम धोखा खाते हैं
वहीं पंच-परमेश्वर हैं जो
घर अलगाते हैं
जितनी सड़कें नई बनीं सब गईं कचहरी में ।