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"यही सोच कर / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

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यही सोचकर आज नहीं निकला -
 
यही सोचकर आज नहीं निकला -
 
गलियारे में
 
गलियारे में
 
मिलते ही पूछेंगे बादल
 
मिलते ही पूछेंगे बादल
तेरे बारे में।
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तेरे बारे में ।
  
 
लहराते थे झील-ताल, पर्वत
 
लहराते थे झील-ताल, पर्वत
 
हरियाते थे
 
हरियाते थे
हम हँसते थे झरना झरना हम
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हम हँसते थे झरना-झरना हम
 
बतियाते थे
 
बतियाते थे
 
इन्द्रधनुष उतरा करता था
 
इन्द्रधनुष उतरा करता था
एक इशारे में।
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एक इशारे में ।
  
 
छूती थी पुरवाई खिड़की, बिजली
 
छूती थी पुरवाई खिड़की, बिजली
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छूती थी
 
छूती थी
 
टीस गई बरसात भरी
 
टीस गई बरसात भरी
पिछले पखवारे में।
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पिछले पखवारे में ।
  
 
जंगल में मौसम सोने का हिरना
 
जंगल में मौसम सोने का हिरना
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लगता था
 
लगता था
 
मन चकोर का बसता है
 
मन चकोर का बसता है
अब भी अंगारे में।।
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अब भी अंगारे में ।।
 
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13:24, 4 जनवरी 2011 का अवतरण

यही सोचकर आज नहीं निकला -
गलियारे में
मिलते ही पूछेंगे बादल
तेरे बारे में ।

लहराते थे झील-ताल, पर्वत
हरियाते थे
हम हँसते थे झरना-झरना हम
बतियाते थे
इन्द्रधनुष उतरा करता था
एक इशारे में ।

छूती थी पुरवाई खिड़की, बिजली
छूती थी
झूला छूता था, झूले की कजली -
छूती थी
टीस गई बरसात भरी
पिछले पखवारे में ।

जंगल में मौसम सोने का हिरना
लगता था
कितना अच्छा चाँद का नागा करना-
लगता था
मन चकोर का बसता है
अब भी अंगारे में ।।